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________________ चतुर्थ खण्ड | १५४ अथवा साथी श्रमण का स्वर्गवास होने पर जहां स्वधर्मी श्रमण हो वहां वह एकाकी श्रमण वर्षावास में भी विहार करके जा सकता है। ५. वैयावृत्य के लिए जाना आवश्यक होने पर जहाँ कहीं जिस किसी श्रमण के प्रति अस्वस्थ होने पर वैयावृत्य के लिए अन्य किसी का न आना निश्चित हो वहाँ वर्षावास में भी विहार करके अस्वस्थ श्रमण की सेवा के लिए जा सकते हैं। अस्वस्थ श्रमण स्वधर्मी [संभोगी] हो या न हो वैयावृत्य के लिए जाना अनिवार्य है।' जलविहार विहार करते-करते मार्ग में यदि जलप्रवाह या नदी आ जाय और उसके पानी की गहराई सामान्य हो तो उसे पार कर आगे विहार करने का विधान है।' नौकाविहार विहार करने के मार्ग में यदि गहरे पानी वाली नदी पा जाय और वह नौका द्वारा पार की जा सके तो श्रमण उसे नौका द्वारा पार करके आगे विहार करे। १. वासावासं पज्जोसविताणं णो कप्पति णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा-गामाणगामं तिज्जित्तते। पंचहिं ठाणेहि कप्पति, तंजहा१. णाणट्ठताते, २. दसणट्ठताते, ३. चरित्तटुताते, ४. पायरियउवज्झाए वा से वीसुंभेज्जा, ५. पायरियउवझायाण वा बहिता वेयावच्चं करणताते । -ठाणं. अ. ५, उद्दे. २, सु. ४१३ । जे भिक्ख गिलाणं सोच्चा ण गवेसइ ण गवसंतं वा साइज्जइ। जे भिक्खू गिलाणं सोच्चा उम्मग्गं वा पडिपहं वा गच्छइ गच्छंत वा साइज्जइ । -निशीथ उद्दे. १०, सु. ४०-४१ ये सभी अपवादविधान श्रमणियों के लिए भी उपयोगी हैं। २. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगाम दूइज्जेज्जा, अंतरा से जंघासंतारिमे उदगे सिया, से पुत्वामेव ससीसोवरियं कायं पाए य पमज्जेज्जा, से पुवामेव [ससीसोवरियं कायं पाए य] पमज्जेत्ता, एगं पादं जले किच्चा एगं पायं थले किच्चा, ततो संजयामेव जंघासंतारिमे उदगे अहारियं रीएज्जा। से भिक्ख वा भिक्खणी वा जंघासंतारिमे उदगे अहारियं रीयमाणे णो हत्थेण हत्थं जाव अणासायमाणेततो संजयामेव जंघासंतारिमे उदगे अहारियं रीएज्जा। -प्राचा. सु. २, अ. ३, उद्दे. २, सु. ४९३-४९४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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