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________________ • आ. हरिभद्र के ग्रन्थों में दृष्टान्त व न्याय / १३९ २. मनुस्मृति १२।१०६ । ३. ब्रह्मसूत्र २।१।१, महाभा. वनपर्व ३१३।११७, गरुडपुराण ११०९।५१, घवला श११४१ पृ. २७३, गोम्मटसार जीवकाण्ड-गाथा-१९६ पर जीव प्र. टीका। ४. पुराणं मानवो धर्मः सांगोपांगचिकित्सकः। आज्ञासिद्धानि चत्वारि न हन्तव्यानि हेतुभिः [मनु. १२।११० प्रक्षिप्त। ५. प्राणा गिज्झो अत्थो प्राणाए चेव सो गेहेयन्वो। दिलैंतिय दिट्ठता कहणविहि, विराहणा इयरा। [आवश्यक-नियुक्ति ६७] । ६. सन्मतितर्क (प्रकरण) ३।४३,४५, ७. सिद्धसेन द्वात्रिंशिका ६।२,५, ८. सिद्ध. द्वात्रिं. ८.१९, ९. सम्बोधप्रकरण [आ. हरिभद्र] ४६-७६, १०. धर्मबिन्दु [हरिभद्र] ८५, ११. परीक्ष्य हेमवद् ग्राह्य पक्षपाताग्रहेण किम [लोकतत्त्वनिर्णय-१८] (तुलना-तत्त्वसंग्रह [बौद्ध ग्रन्थ]-३५८८,) १२. योगदृष्टिसमुच्चय [ हरिभद्र ] १४३-१४६, ९०-९०, योगबिन्दु [हरिभद्र] ६६-६७, वादाष्टक [हरिभद्र], १३. युक्तिमद् वचनं यस्य तस्य कार्यः परिग्रहः [लोकतत्त्वनिर्णय ३८] द्र० योगबिन्दु २२, ५२५, ३१७, १४. योगदृष्टि ९९-१००, १५. योगदृष्टि ८७-९८, ज्ञानसाराष्टक [हरिभद्र २६।३ [तुलना प्रागमस्य प्रतकंगोचरत्वात् [धवला शश२५, प. २०७] पंचाध्यायी २-४८३, पालाप-पद्धति० ५, १६. पंचवस्तुक [हरिभद्र] ९९१, १७. पंचवस्तुक ९९३-९४ १८. पंचवस्तुक ९९५ १९. दशवकालिकवृत्ति [हरिभद्र] पृ. ४, २०. प्राचारांग ११६१५, आदिपुराण [जिनसेन] १११३०, २१. दशवकालिक-नियुक्ति ५२, २२. स्थानांगसूत्र ४१३१४९९ पर टीका, स्थानांग में दृष्टान्त [ज्ञात] के चार (माहरण, आहरणतद्देश, उपन्यासोपनय आदि) भेद बताये गये हैं। इनमें प्रत्येक के भी चार-चार भेद बताए गये हैं । अत: कुल भेदों की संख्या १६ हो जाती है [द्र. स्थानांग ४।३।४९९-५०३] तथा दशवकालिकनियुक्ति ५३-१३७ उदाहरण के जो चार भेद नियुक्ति [गाथा-५४] में बताए गए हैं, इनमें प्राहरण-दृष्टान्त का दूसरा नाम 'उदाहरण' है, इसीलिए नियुक्ति में वणित उदाहरण के भेद और स्थानांग (४।३।५००) में वर्णित प्राहरणदुष्टान्त के भेद एक ही हैं। २३. नन्दीसूत्र ४७ पर हरिभद्रीय वृत्ति तथा दशवकालिक-वृत्ति पृ. ५० २४. न्यायसूत्र ११३६, २५. अनुयोगद्वारसूत्र-वृत्ति [हरिभद्र] पृ. १५, सूत्रकृतांग ११।२१ पर शीलांकाचार्यकृतवृत्ति पृ. २२६, धम्मो दीयो संसार समुद में वर्म ही दीप है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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