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________________ आलंकारिक दृष्टि से श्री उत्तराध्ययनसूत्र : एक चिन्तन / १०५ गाथा ६४-'मच्छो वा' मत्स्य की तरह छलपूर्वक पकड़ा गया। उपमालंकार । गाथा ६६---बाज पक्षियों, जाली तथा वज्रलेपों के द्वारा पक्षी की भाँति 'सउणो विव' उपमालंकार ! गाथा ६७–'कुहाडफरसुमाईहि, वड्ढईहिं दुमो विव'-बढ़ई के द्वारा वृक्ष की तरह कुल्हाड़ी और फरसादि से मैं काटा गया। उपमालंकार तथा 'फरसुमाईहिं-वड्ढईहिं' छकानुप्रास ! गाथा ६५-'कुमारेहि अयं पिव'-लुहारों के द्वारा लोहे की भांति । उपमालंकार । तथा 'चवेडमुट्ठिमाईहिं कुमारेहि' में छेकानुप्रास ! गाथा ७०--'अग्गिवण्णाई'---अग्नि जैसा लाल । उपमालंकार ! गाथा ७८ तथा ८४-'एगभूओ अरणे वा, जहा उ चरई मिगो। एवं धम्म चरिस्सामि, संजमेण तवेण य।' जैसे मग जंगल में अकेला विचरता है वैसे ही मैं भी संयम और तप के साथ एकाकी होकर धर्म का आचरण करूगा । उदाहरणालंकार । गाथा ८७--'महानागो व्व कंचुयं' जैसे महानाग केंचुल को छोड़ता है वैसे ममत्व को मगापुत्र ने छोड़ दिया। दृष्टान्तालंकार । गाथा ८८-'रेणुयं व पडे लग्गं'-कपड़े पर लगी रज की तरह [मगापुत्र ऋद्धि-धन मित्र-पुत्र-कलत्र और ज्ञातिजन को झटककर संयमयात्रा को निकल पडा । उपमालंकार। गाथा ९७-'विणियद्रन्ति भोगेस, मियापुत्त जहा रिसी'--पण्डित पुरुष/संबुद्ध पुरुष कामभोगों से वैसे ही निवृत्त होते हैं जैसे महर्षि मृगापुत्र ! उदाहरणालंकार । गाथा ९९-'धम्मधुरं रूपक । अध्ययन २०-गाथा ३-'नाणा' शब्द ३ बार आया है अतः यमक । 'नंदणोवम' उद्यान नंदन वन के समान उपमालंकार । तथा स्वभावोक्ति । गाथा २०–'पवेसेज्ज अरी कुद्धो, एवं मे अच्छिवेयणा' जैसे शत्रु क्रुद्ध होकर शरीर के मर्मस्थानों में तीक्ष्ण शस्त्र घोंपते हैं वैसे ही मेरी आँखों में तीव्र वेदना हो रही थी। उदाहरणालंकार। गाथा २१-'इंदासणिसमा घोरा'-इन्द्र के वज्रप्रहार से भयंकर वेदना होती है वैसे ही मुझे भी वेदना हो रही थी-उदाहरण । गाथा ३६-'अप्पा नई वेयरणी, अप्पा मे कूडसामली। अप्पा कामदुहा धेणू, अप्पा मे नंदणं वणं ॥' प्रात्मा को ही वैतरणी, कूडसामली, कामदुधा धेनु और नंदन वन से प्रारोपित किया गया है अतः रूपक है । आत्मा को एक ओर वैतरणी तथा कूडशामली वृक्ष बताया तथा दूसरी ओर कामदुधा धेनु और सुखप्रद नंदनवन कहा है अत: विरोधाभासालंकार तथा यमकालंकार भी है। ਧਰਮ ਦੀ संसार समुद्र में धर्म ही दीप है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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