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आध्यात्मिक जीवन का अभिन्न अंग उपासना / ७३
प्रत्येक जरदोश्ती अग्नि-मंदिर में अग्नि के सन्मुख खड़े रहकर उसमें चन्दन का हवन करते हुए प्रार्थना करता है जो स्तुति अवेस्ता में 'आतिश निपाएश' के नाम से प्रसिद्ध है। इनकी स्तुति इस प्रकार की जाती है:
"हे अहरमज्द के अग्नि! तुम सृष्टि के स्वामी हो अत: मुझे पवित्र करो, दुष्कर्मों से दूर रखो, मेरे भोजन-पान में निवास करो, राह-बाट व घर प्रादि को प्रकाशमान करते रहो तथा दीर्घ-जीवन, अनन्तसुख, प्रखरबुद्धि, बल और पौरुष प्रदान करो।"
इस प्रकार पारसी जरदोश्ती केवल अग्नि को अपना उपास्य मानकर उसकी उपासना करते हैं तथा जीवन में जो कुछ भी आवश्यक है उसकी माँग अपनी प्रार्थना में करते हैं। इनके धर्मग्रन्थ का नाम 'जन्द अवेस्ता' है।
ईसाईधर्म में प्रार्थना ही उपासना
ईसाईधर्म-ग्रन्थ बाइबिल में 'स्तोत्र-संहिता' नामक पाँच अध्याय तथा १५० वर्ग का एक प्रकरण उपासना के लिए कहा गया है। उसमें 'परमेश्वर का स्तवन करो' यह वाक्य अनेक बार आया है। मूलग्रन्थ में उसे हालेलया' कहा गया है। ईसाई धर्म की मान्यता है कि परमेश्वर स्वयं को तीन रूपों में प्रकट करता है:-(१) परमपिता परमात्मा, (२) प्रभु का पुत्र ईसा तथा (३) पवित्रात्मा के रूप में । इनका पवित्र चिह्न क्रॉस है तथा मानवमात्र से प्रेम करना ही प्रभु की सच्ची उपासना मानी जाती है।
इस्लाम धर्म में उपासना
इस धर्म में बताया गया है कि हजरत मुहम्मद को उस समय में प्रचलित 'बुतपरस्ती' अच्छी नहीं लगी तो उन्होंने 'खुदापरस्ती' का प्रचार करने का निश्चय किया। उन्होंने काफी समय तक 'मक्का' के समीप हारा पर्वत की एक गुफ़ा में एकान्तवास किया और तत्पश्चात् अपनी बेगम को सूचित किया कि फ़रिश्ता जिबराइल ने उन्हें संदेश दिया है कि खुदा ने मुहम्मद को अपना पैगम्बर नियत किया है। वे पढ़े-लिखे नहीं थे किन्तु जोश व आवेश में करान की आयतें उनके मुंह से निकलती रहती थीं। इस्लाम के मुख्य दो स्तंभ हैं
(१) ईमानः-इसमें खु दा, उनके पैगम्बर, फ़रिश्ते, कुरान, खुदा की सर्वशक्तिमत्ता तथा मृत्यु के पश्चात् न्याय के दिन में विश्वास करना है।
(२) दीन:-दीन के अङ्ग नमाज , रोजा, जकात (दान देना) और हज़ (पवित्र तीर्थ 'मक्का' जाना) हैं।
हिन्दू प्रायः एकान्त में प्रभु की उपासना करते हैं, ईसाई घुटने टेककर तथा यहूदी (जरदोश्ती) खड़े होकर प्रार्थना करते हैं; किन्तु मुसल्मानों की पाँच वक्त, की नमाज या ख दा की उपासना चटाई अथवा दरी पर ही हो सकती है। उस समय उपासक का मह मक्का की ओर होना भी आवश्यक है । प्रार्थनाएँ छोटी और अरबी भाषा में होती हैं जिन्हें 'रकोह' कहते हैं । प्रत्येक शुक्रवार को मध्याह्न के उपरान्त की नमाज सामूहिक होती है। इनका महामन्त्र 'कलमा' है। कलमे पाँच हैं जिन्हें दिल से मानना तथा जबान से कहना आवश्यक होता है।
धम्मो दीवो संसार समुद्र में धर्म ही दीप है
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