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________________ अर्चनार्चन Jain Education International चतुर्थखण्ड / ६२ ऐसा कोई नियम नहीं है कि परमाणुओं से बने स्कन्धों में विद्यमान रूक्षता पौर स्निग्धता के अंशों में परिवर्तन न हो तब तक उस स्कन्ध से संयोजित परमाणु उस स्कन्ध से अलग नहीं होता। क्योंकि स्कन्ध से परमाणु के अलग होने का एकमात्र कारण यहीं नहीं है। दूसरे भी कारण हैं । उनमें से कोई भी कारण मिलने पर वह परमाणु उस स्कन्ध से अलग हो सकता है । वे कारण इस प्रकार हैं १. कोई भी स्कन्ध अधिक से अधिक असंख्यात काल तक स्कन्ध रूप में रह सकता है । उतने काल के पूर्ण होने पर परमाणु स्कन्ध से अलग हो सकता है । २. ग्रन्य द्रव्य द्वारा भेदन होने से भी स्कन्ध का विघटन होता है। ३. बन्धयोग्य स्निग्धता और रूक्षता के गुणों में परिवर्तन पाने से भी स्कन्ध का विघटन हो जाता है। ४. स्कन्ध में स्वाभाविक रीति से उत्पन्न होने वाली गति से भी स्कन्ध का विघटन होता है। परमाणु जड़ होकर भी गति धर्म वाला है । उसकी गति अन्य पुद्गल प्रेरित भी होती है और अप्रेरित भी सदैव गति करता रहता है, ऐसी बात नहीं है, कभी करता है कभी नहीं । परमाणु अपनी उत्कृष्ट गति से एक समय में चौदह राजू ऊँचे लोक के पूर्व चरमान्त से पश्चिम चरमान्त, उत्तर चरमान्त से दक्षिण चरमान्त तथा अध:चरमान्त से ऊर्ध्वचरमान्त तक और अल्पतम गति से गमन करने पर एक समय में आकाश के एक प्रदेश से अपने निकटवर्ती दूसरे प्रदेश में पहुंच सकता है। परमाणु की गति स्वत: भी होती है और अन्य की प्रेरणा से भी । निष्क्रिय परमाणु कब गति करेगा, यह अनिश्चित है और इसी प्रकार सक्रिय परमाणु कब गति किया बंद करेगा, यह भी अनियत है। वह एक समय से लेकर प्रावलिका के संख्यातवें भाग समय में किसी समय भी गति कर सकता है और गति क्रिया बंद कर सकता है । परमाणु में सूक्ष्मपरिणामावगाहन की विलक्षण शक्ति है। जिस श्राकाशप्रदेश में एक परमाणु है उसी प्रदेश में दूसरा परमाणु भी स्वतन्त्रतापूर्वक रह सकता है और धनन्तप्रदेशी स्कन्ध भी ठहर जाता है । संक्षेप में यह जैनदर्शन में पुद्गल द्रव्य की रूपरेखा है । जो महासागर में से एक बूंद ग्रहण करने के लिये चंचुपात करने जैसी है। विस्तृत विचार तो श्रम एवं समयसाध्य है । For Private & Personal Use Only 00 www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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