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________________ जन तात्त्विक परम्परा में मोक्ष : रूप-स्वरूप /४१ (ङ) द्रव्यसंग्रह, मूल, ३० (च) अनगारधर्मामृतं, २।३७ २७. (क) प्रात्मकर्मणोरन्योन्यप्रदेशानुप्रवेशलक्षणो बंधः। __---राजवार्तिक, १।४।१७।२६।२९ (ख) स्थानाङ्ग सूत्र, स्थान २, उद्देशा २ (ग) प्रज्ञापना पद २३ सूत्र ५ २८. (क) समवायाङ्ग, समवाय ४ (ख) मूलाचार, गाथा १२२१ (ग) तत्त्वार्थसूत्र, ८१३ (घ) द्रव्यसंग्रह मूल, ३३ (ङ) गोम्मटसार, कर्मकाण्ड, मूल, ८९/७३ २९. 'कर्म, कर्मबन्ध और कर्मक्षय' लेखक-राजीव प्रचंडिया, ऐडवोकेट 'जिनवाणी', कर्मसिद्धान्त विशेषाङ्क, १९८४, ३०. (क) प्रास्रवनिरोधः संवर:-तत्त्वार्थसूत्र ९।१ (ख) सर्वेषामास्रवाणां तु निरोधः संवरः स्मृतः-योगशास्त्र, ७९ पृष्ठ ४ (ग) उत्तराध्ययनसूत्र, अध्याय २९, सूत्र ११ (घ) स्थानाङ्ग वृत्ति, स्था० १ (ङ) बृहद्नयचक्र, १५६ (च) राजवार्तिक, ९।१।६।५८७ (क) सपुभिद्यते द्वेधा द्रव्यभावविभेदतः । यः कर्मपुद्गलादानच्छेदः स द्रव्यसंवरः । भवहेतुक्रियात्यागः स पुनर्भावसंवर। --योगशास्त्र, ७९-८०, पृष्ठ ४ (ख) स्थानाङ्ग १।१४ की टीका (ग) सप्त तत्त्वप्रकरण, हेमचन्द्रसूरि, ११२ (घ) तत्त्वार्थ० सर्वार्थसिद्धि, ९।१ (ङ) द्रव्यसंग्रह, २०३४ (च) पंचास्तिकाय, २॥१४२, अमृतचन्द्र वृत्ति, (छ) पंचास्तिकाय, २२१४२, जयसेन वृत्ति, ३२. (क) संसारनिमित्तक्रियानिवृत्तिर्भावसंवरः। तन्निरोधे तत्पूर्वकर्मपुदगलादान विच्छेदो द्रव्यसंवर:-सर्वार्थसिद्धि, ९.१४४०६।५ (ख) चेदणपरिणामो जो कम्मस्सासवणिरोहणे हेदु....चाणित्तं बहुभेया णायव्वा भावसंवरविसेसा-द्रव्यसंग्रह, मूल, ३४-३५ (ग) स गुप्तिसमितिधर्मानुप्रेक्षापरीषहजयचारित्र:-तत्त्वार्थसूत्र, ९२ (घ) समिई गुप्ति परिस्सह-जइधम्मो भावणा चरित्ताणि । पणतिवीसदसवार पंचभेएहि....सगवन्ना। -नवतत्त्वप्रकरण, २५ (ङ) स्थानाङ्ग ।२।४१८ (च) समवायाङ्ग, ५ धम्मो दीवो संशार समुद्र में धर्म ही दीप है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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