SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आशीर्वचन 0 उपाध्याय श्री पुष्करमुनिजी म. जैन संस्कृति में श्रमणियों का गौरवपूर्ण स्थान रहा है, वे स्नेह, सद्भावना-त्याग-वैराग्य और संयम की जाज्वल्यमान प्रतीक रही हैं । जैन इतिहास के स्वर्णपृष्ठ इस बात के साक्षी हैं कि अनेक श्रमणियों ने अपने तपःपूत प्राचरण से भूले-भटके जीवन-राहियों को मार्गदर्शन दिया। ऋषभदेव-युग में अहंकार गजराज पर आरूढ बाहुबली जी को विनय का पाठ पढ़ाया ब्राह्मी और सुन्दरी श्रमणी ने। भगवान अरिष्टनेमि के युग में रथने मि, जो साधना से विचलित हो रहे थे, उन्हें सन्मार्ग पर आरूढ किया साध्वीप्रमुखा राजमती ने। महावीर शासन में प्रतापपूर्ण प्रतिभा के धनी आचार्य हरिभद्र को जो हिंसा की ओर तेजी से कदम बढ़ा रहे थे, उन्हें श्रमणधर्म का सही परिज्ञान कराया साध्वीरत्न याकिनी महत्तरा ने। इस प्रकार अगणित साध्वियों ने श्रमणों को भी मार्गदर्शन दिया। उन्हें त्याग और वैराग्य के पथ पर बढ़ने को उत्प्रेरित किया। जैन संस्कृति में हजारों ऐसी साध्वियां हुई हैं जिनमें प्रतिभा की तेजस्विता थी, साथ ही हजारों ऐसी भी साध्वियां हुई हैं जो सिंहनी की भांति तप के क्षेत्र में निरन्तर आगे बढ़ती रहीं। उन्होंने तप के क्षेत्र में जो कीर्तिमान स्थापित किया वह अद्भुत है, अनठा है । अन्तकृत्दशांगसूत्र में उन साध्वियों के नामोल्लेख हैं जो कालजयी हैं। जैन श्रमणियों ने अपनी अनूठी विशेषतानों से यह सिद्ध कर दिया कि आध्यात्मिक समूत्कर्ष के क्षेत्र में श्रमणों से श्रमणियां पीछे नही हैं । हर तीर्थंकर के शासन में श्रमणों की अपेक्षा श्रमणियों की संख्या अधिक रही है। . साध्वीरत्न उमरावकुंवर जी "अर्चना" श्रमणसंघ की एक विदुषी साध्वी हैं, जिन्होंने राजस्थान की पावनपुण्य धरा में जन्म लिया । वहीं पर जिनका बाल्यकाल बीता और वहीं पर जिन्होंने साधना के पथ पर कदम बढ़ाये। राजस्थानी आन-बान और शान के साथ आप श्रमणधर्म को स्वीकार कर प्रतिपल-प्रतिक्षण आगे बढ़ती रहीं। आपने अपने तेजस्वी व्यक्तित्व और कृतित्व से राजस्थानी सतियों के नाम में चार चांद लगाये हैं। इसीलिए श्रद्धालुगण पापको अभिनन्दनग्रन्थ समर्पित कर अपने आपको धन्य-धन्य अनुभव कर रहे हैं । मैंने अनेकों बार महासतीजी को देखा है। उनसे विचार-चर्चाएँ भी हुई हैं। मैंने विचार-चर्चा में यह पाया कि उनमें सहज जिज्ञासा है। तत्त्व को जानने की गहन रुचि है। जप-ध्यान आदि में गहराई से पैठने की प्रबल भावना है। ऐसी विदषी साध्वियों पर समाज को नाज है, गौरव है। मेरा हार्दिक आशीर्वाद है कि महासतीजी ज्ञान-दर्शन-चारित्र में दिन दूना रात चौगुना विकास करें, पूर्ण स्वस्थ व प्रसन्न रहकर जिन-शासन की शोभा-श्री में वद्धि करती रहें। आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की अर्चनार्चन /४ Jain Education intemalionai For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy