SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 537
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लपक प्र 31 र्च दी क्ष 15.55 F55 to no to अ भि अ र्च ना र्च न संसार की अन्य सभी संस्कृतियों से अनेक गुनी अधिक श्रेष्ठ तथा आध्यात्मिकता से ओतप्रोत हमारी संस्कृति तभी पुनर्जीवित होकर जगमगा सकेगी जबकि आप सब ही नहीं, वरन् हमारे देश का प्रत्येक व्यक्ति दृढ़-प्रतिज्ञ बनकर हमारी संस्कृति को नष्ट प्रायः करने वाली इस दहेज रूपी कुप्रथा को नष्ट करने का प्रयत्न करे । चाहने पर ऐसा होना असंभव नहीं है । किसी ने ठीक ही कहा है: विष को भी अमृत बनाना जानता है आदमी । पतझड़ में बहार लाना जानता है आदमी । कौनसी तदबीर है जो आदमी न कर सके, पत्थर को भगवान बनाना जानता है आदमी । वस्तुतः प्रगाढ ग्रास्या धौर -संकल्प से जब मनुष्य कंकर को शंकर मानकर उससे भी इच्छित लाभ प्राप्त कर सकता है, तब जन मानस को बदलना कोनसी बड़ी बात है। महात्मा गांधी ने अपने संकल्प में कटिबद्ध होकर ही भारतीयों की श्रात्म-हीनता नष्ट करते हुए उनकी शक्ति को जगाकर अंग्रेजों की गुलामी के विरुद्ध उभार दिया। परिणाम यह हुआ कि भारत का बच्चा-बच्चा श्रजाद होने के लिये मचल उठा तथा सभी ने संगठित होकर मोर्चा लिया और परतंत्रता की बेड़ियाँ तड़ातड़ टूट गईं । भारतीयों की शक्ति का सभी देशों ने लोहा माना तथा स्वर्णाक्षरों में उसका आदर्श अंकित हो गया। Jain Education International मेरे कहने का तात्पर्य यही है कि ठान लेने पर जब देश की सत्ता और इतिहास भी बदला जा सकता है तो कल्याणकारी दहेज रूपी कुप्रथा का उन्मूलन करना कौन सी बड़ी बात है। प्रावश्यकता है चुनिदा व्यक्तियों के द्वारा जन-मानस को इसके विरुद्ध बनाने की आप सबको महसूस करना चाहिये कि प्राण तो भले ही कुछ नारियों के जाते हैं, किन्तु इसका प्रभाव सम्पूर्ण नारी जाति पर पड़ता है। फलस्वरूप प्रत्येक नव वधू होने के कारण स्वयं को शक्तिहीन, विवश और अबला समझ लेती है। जाती है, विकसित नहीं होती। परिणाम यह होता है कि न वह सच्ची सहधर्मिणी बन पाती है और न ऐसी महान माता, जिसके लिये हमारे यहाँ सदा कहा जाता रहा है: अथवा कन्या भयग्रस्त उसकी बुद्धि कुंठित हो "सहस्र ं तु पितृम्माता, गौरवेणातिरिच्यते ।" तृतीय खण्ड - हजार पिताओं से भी मां का गौरव अधिक है । आशा ही नहीं, विश्वास है कि आप सब भी संगठित होकर भारत की प्रत्येक नारी को उसका गौरवपूर्ण पत्नीत्व एवं मातृत्व दिलाने का प्रयत्न करेंगे । 00 102 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy