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तृतीय खण्ड
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मिल सकेगी। अधिकतर सुनने में तथा पढ़ने में यही पाता है कि अमुक वधू को सास ने दहेज कम मिलने से अमानुषिक कष्ट दिया और अंत में पति अथवा पुत्र की सहायता से मार डाला। प्रत्येक बहिन यह न भूले कि मैं प्रारम्भ में नई बहू बनकर ही आई थी, और अब जैसा बर्ताव अपनी बहू से करूंगी, भविष्य में अर्थात् वृद्धावस्था में बहू भी मेरे साथ उसी प्रकार उपेक्षापूर्ण अथवा अप्रिय व्यवहार करेगी । मेरा विश्वास है कि अगर प्रत्येक बहिन अपनी सास अथवा बहू से मधुर व्यवहार करे तो वह कभी घाटे में नहीं रहेगी, अन्यथा जैसा घर में रवैया होगा उसी के अनुसार प्रत्येक को भुगतना होगा । एक उदाहरण है--
एक महिला अपनी सास को नफ़रत और तिरस्कार के साथ रूखा-सूखा खाना भी पत्तल में देकर सिकोरे में पानी भर दिया करती थी। किन्तु कुछ समय पश्चात् जब उसके पुत्र का विवाह हुमा और बहू घर में आई तो वह अपनी सास का व्यवहार ददिया सास के प्रति जैसा था, उसे देखकर दंग रह गई।
बहू अत्यन्त चतुर, दयालु एवं सेवाभावी थी। उससे ददिया सास का कष्ट देखा नहीं गया, अत: उसने अपनी सास को बुद्धिमानी से शिक्षा देने का निश्चय किया। अगले दिन से ही वह मिट्टी के उन सिकोरों को इकट्ठा करके एक स्थान पर रखने लगी जिन्हें उसकी सास कभीकभी फेंक दिया करती थी।
यह देखकर उसकी सास ने आश्चर्यपूर्वक कहा:"बहू ! ये सिकोरे किसलिये इकट्ठे कर रही हो ?
बहू ने शांतिपूर्वक उत्तर दिया-"माँ जी ! जब आप वृद्ध हो जाएँगी तब मुझे भी तो आपके लिये सिकोरों की जरूरत पड़ेगी न ? अगर उस समय न मिले तो इन्हीं को साफ़ करके काम में ले लूंगी।
यह सुनते ही सास की आँखें खुल गई और उसी दिन से उसने अपना बुरा बर्ताव छोड़ दिया।
मेरे कहने का अभिप्राय यही है कि अगर बहिनें दृढ़ निश्चय कर लें तो अपने पति व पुत्र आदि सभी को दहेज-विरोधी बना सकती हैं। भारतवर्ष में मनुष्य को सच्चे अर्थों में मनुष्य बनाने का श्रेय नारी जाति को ही प्राप्त हुआ है। उसने अपने त्याग, स्नेह, उदारता तथा सहिष्णता आदि अनेक गुणों के द्वारा पुरुषों को संकट के समय में प्रेरणा देकर उसे उबारा है, तथा 'का मंत्री' यानी कदम-कदम पर सही मार्ग बताकर विनाश के पथ पर जाने से रोककर मंत्री के समान कार्य किया है। इसीलिये एक पाश्चात्य विचारक ने कहा है:
"Man have sight, woman insight.” -मनुष्य को दृष्टि प्राप्त है, किन्तु नारी को दिव्यदृष्टि मिली हुई है।
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