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________________ दहेजरूपी विषधर को निर्विष बनाओ ! हमारी बहिनों को ऐसे आदर्श सामने रखते हुए अपनी शक्ति को पहचानना चाहिये तथा उसे काम में लेते हुए अपने समस्त हीन भावों का त्याग कर देना चाहिये । प्राज के व्यक्ति विज्ञान के क्षेत्र में बहुत प्रगति की है किन्तु नैतिक तथा आध्यात्मिक क्षेत्र में वह अवनति की ओर जा रहा है । किसी समय भारतभूमि के ऋषियों-मुनियों, ज्ञानियों एवं दार्शनिकों के द्वारा किये गए विचारों और स्थापित किये गए आदर्शों से आज की विचारधारात्रों में जो आकाश-पाताल का अन्तर आ गया है वह भारत की संस्कृति और गौरव के लिये लज्जाजनक तो है ही, गहन चिन्ता उत्पन्न करनेवाला भी है । इसलिये हमारी बहनों को और गुण-संपन्न कन्याओं को अपने स्नेह, सेवा, सद्भावना, उदारता एवं आध्यात्मिकता आदि सम्पूर्ण प्राकृतिक गुणों को तथा योग्यताओं को कायम रखते हुए जनमानस को बदलने का प्रयत्न करना चाहिये । अपने उत्तम तथा विशिष्ट व्यवहार से समाज के अहंकारी तत्त्वों को भी महसूस करा देना चाहिये कि :-- इनाम उसे मिलता है, जिसका काम होता है । पत्र उसे मिलता है जिसका नाम होता है । स्वयंवर में ग्रामन्त्रित होने से क्या हुआ ? सीता उसे मिलती है, जिसमें 'राम' होता है । कवि की ये पंक्तियाँ अत्यन्त सुन्दर और मार्मिक हैं। इनमें स्पष्ट कहा गया है कि व्यक्ति को उसकी अपनी योग्यता के अनुसार ही उपलब्धि हासिल होती है और होनी चाहिये भी । रावण के समान आचरण करता हुआ व्यक्ति सीता के जैसी महान् और पतिव्रता पत्नी सदृश देवी तुल्य पत्नी पाने के लिये उसे प्राप्त करना चाहे तो यह उसकी मूर्खता है। सीता के राम बनना होगा । दूसरे शब्दों में उसमें 'राम' यानी ईश्वरत्व होना चाहिये । जो व्यक्ति नीतिमान्, सदाचारी अथवा धर्माचारी नहीं है, उसे सीता को वरण करने का अधिकार भी नहीं है । महिलाएँ सास नहीं, मां बनें 1 आज मेरे समक्ष भाइयों की संख्या से बहनों की संख्या कम नहीं है । मेरी बहिनों से यही अपील है कि प्रत्येक बहिन दहेज प्रथा के कारण भयंकर रूप से दूषित हुए समाज को बदलने का प्रयत्न अपने घर के वातावरण को बदल कर करें। यहाँ उपस्थित अनेकों बहिनें ऐसी होंगी, जिनके घर में बहुएँ हैं, अनेक निकट भविष्य में सास बनने वाली भी होंगी। कितना अच्छा रहे कि वे सास न बनकर अपनी बहुत्रों की माता के समान वात्सल्यमयी बनकर अपने घर को स्वर्ग बनाएँ । अगर सभी बहिनें ऐसा संकल्प कर लें तो 'इस हाथ दे, उस हाथ ले' वाली कहावत चरितार्थ हो जाएगी, अर्थात् उनकी पुत्रियों को भी ससुराल में जाते ही दूसरी माता समाहिकामे समणे तवस्सी जो श्रमण समाधि की कामना करता है, वही तपस्वी है Jain Education International 99 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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