SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 513
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . अर्ज ना च न . तृतीय खण्ड IN 4.4.24.99.94 अर्थात् जीवन के इहलौकिक और पारलौकिक, सभी कर्म-क्षेत्रों में इसने ऐसे महान् आदर्श उपस्थित किये हैं कि समग्र विश्व के देशों ने इसका लोहा माना है। मनुष्य के अंदर जो भौतिक, जैविक, मानसिक, नैतिक तथा आत्मिक शक्तियाँ क्रियाशील हैं, भारतीय संस्कृति ने इन सभी को बल प्रदान करते हुए उन्नति की सर्वोच्च सीमा तक पहुँचाया है तथा इन सभी में, आपस में भी सामञ्जस्य रखा है। इसका क्षेत्र यद्यपि मुख्यरूप से प्रान्तरिक है किन्तु इसने बाह्य-क्रियाओं पर प्रभाव डालते हुए उन्हें भी धर्म-नीति के अनुसार संयमित रखते हुए दोष-रहित बनाने का प्रयत्न किया है। यथा--तपस्या, व्रत, अनुष्ठान एवं पूजा आदि क्रियाएँ करते हुए उनके लिये अहंकार न बढ़ाने की, परोपकार करके प्रशंसा की चाह न करने की, दान देकर यश-प्राप्ति की इच्छा न रखने की और दूसरों के द्वारा प्रताड़ित होकर भी क्रोध न करने की प्रेरणा दी है। यही कारण है कि भारत के सुसंस्कृत मानव त्याग और प्रेम को महत्त्व देते हए ऐसा जीवन जीने में समर्थ होते हैं जो इहलोक और परलोक, दोनों को ही सुधार सके। भारतीय संस्कृति साम्प्रदायिकता के विष से परे है प्रायः भारतीय संस्कृति को लोग हिन्दू-संस्कृति भी कहते हैं और इसकी वजह से अनेक व्यक्ति जो हिन्दुत्व से अनभिज्ञ हैं वे हिन्दुत्व का अर्थ साम्प्रदायिकता तथा हिन्दू का अर्थ साम्प्रदायिक समझते हैं। ऐसा विचार एवं कथन पूर्णतया भ्रमपूर्ण और अनर्गल है । प्रत्येक भारतीय को 'हिन्दू' शब्द के अर्थ को समझ लेना चाहिये । वैसे इस शब्द की परिभाषा विभिन्न प्रकार से की गई है, किन्तु सबसे सरल, प्रामाणिक और विशद परिभाषा 'अखिल भारतवर्षीय हिन्दूमहासभा की ओर से इस प्रकार हुई है: __ आसिन्धोः सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारतभूमिका । पितृभूः पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरिति स्मृतः ॥ अर्थात्-जो भी व्यक्ति इस सिन्धु नद से लेकर सागर (कन्याकुमारी) पर्यन्त विस्तृत इस भारत-भूमि को अपनी पितृ-भूमि और पुण्यभूमि मानता है, उसे ही हिन्दू कहा जा सकता है। इस परिभाषा में साम्प्रदायिकता लेशमात्र भी नहीं है वरन राष्ट्रीयता और देशभक्ति की भावना ही है। राष्ट्रीयता भी ऐसी, जिसका भारत के अलावा कोई अस्तित्व ही नहीं है। यहाँ न तो जैन अथवा ब्राह्मण अधिक हिन्दू हैं और न ही शूद्र कम, सभी समान हिन्दू हैं। हिन्दुत्व एक सागर है, जिसमें विभिन्न सम्प्रदाय रूपी नदियाँ पाकर विलीन हो जाती हैं तथा लहराती हुई तरंगों के समान समुद्र की शोभा बढ़ाती हैं। हाँ, जैन-धर्म के नाम पर जैन, बौद्ध-धर्म के नाम पर बौद्ध, सनातन-धर्म के नाम पर सनातनी, इसी प्रकार सिख, आर्यसमाजी, ईसाई, पारसी आदि अपने-अपने धर्मों के अथवा 78 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy