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________________ तूफानों से टक्कर लेने वाला आस्था का दीपक स्वार्थ, कपट और पाखंड के कारण सम्यक ज्ञान-रूप कुजी ही प्राप्त नहीं कर सके हैं। उनके आंतरिक खजाने पर अज्ञान के ताले पड़े हैं और माया की आगलों से जुड़ा हुआ वह अभी तक अप्राप्य है। इसीलिये कहा है-भोली यात्मा! तेरे लिये मंदिर-मंदिर भटकना, प्रत्येक देवीदेवता के दर-दर की खाक छानना और उनकी पोल-पोल पर चढ़ना उचित नहीं है। किन्तु यह आवश्यक है कि: इक मूरत मंदिर में धर ले, इक सरवर सू गागर भर ले, इक देहरी पर दीप संजोकर, इक आंगण में नर्तण करले। गजवण ! गली-गली में रास रमणो चोखो कोनी ए। पद्य में प्रात्मा को लक्ष्य करके यथार्थ सत्य कहा है कि--दर-दर भटकते हुए रास रचने की अपेक्षा अपने मन-मंदिर में एक इष्ट की स्थापना कर उस एक ही दहलीज पर आस्था का दीपक संजो! और मन के प्रांगण में ही तन्मय होकर भक्तिपूर्वक नत्य कर ! इसके अलावा अपने अंतर की प्यास बुझाने के लिये बाहर डोलने की क्या आवश्यता है ? अपने अन्दर ही आनन्द के अक्षय स्रोत से मन की गागर भरकर निश्चिततापूर्वक साधना में निमग्न हो जा। सच्चे धर्म की कसौटी आज के भौतिकवादी, जो धर्म का मर्म नहीं समझ पाते, उनके लिये धर्म एक उपहास का विषय बनकर रह जाता है। वे देखते हैं-कोई वेद, पुराण, कुरान या बाइबिल रट लेने में धर्म समझते हैं, कोई नमाज, पूजा, हवन, संध्या या प्रार्थना में धर्म मानते हैं, कोई गंगाजल में स्नान करके, कोई चारों ओर अग्नि जलाकर उसकी आतापना लेकर और अनेक व्यक्ति इसी प्रकार की अन्यान्य क्रियाओं को करने में धर्म मानते हैं। किन्तु धर्म के मर्म को न समझकर वे उन क्रियानों से सच्चा लाभ नहीं उठा पाते । हमें देखना है कि सच्चा धर्म किसे माना जाय? हम देखते हैं कि अनेक धर्म-ग्रन्थों को निचोड़ कर रट लेने पर भी लोग धर्म से विमुख रहते हैं, क्योंकि वे उसे जीवन-व्यवहार में नहीं लाते। ठीक उसी प्रकार, जिस प्रकार तैरने की कला का ज्ञान कराने वाली पुस्तक को अच्छी तरह पढ़कर भी व्यक्ति न पानी में उतरता है और अगर किसी प्रकार उतर जाय तो प्राप्त ज्ञान के अनुसार हाथ-पैर नहीं चलाता। समाहिकामे समणे तवस्सी " ओ श्रमण समाधि की कामना करता है, वहीं तपस्वी है। 57 Jain Education International Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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