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________________ .37 ला च न . तृतीय खण्ड 55 ..ला श्री शंकराचार्य ने भी 'मोहम्दगर' में लिखा हैसुरमन्दिरतरुमूलनिवासः, शय्याभूतलमजिनं वासः। सर्वपरिग्रहभोगत्यागः, कस्य सुखं न करोति विरागः॥ यानी-जो विरक्त व्यक्ति देव-मन्दिर या वृक्ष के नीचे पड़े रहते हैं, पृथ्वी जिनकी चारपाई और चर्ममय ही जिनका वस्त्र होता है, सम्पूर्ण विषय-भोगों के सामान जिन्होंने त्याग दिये हैं अर्थात् जो वासना-रहित हो गए हैं-ऐसे किन मनुष्यों को सुख और शांति नहीं है ? यानी त्यागी सदा सुखी व संतुष्ट रहता है। बंधुनो ! मेरे कहने का अभिप्राय यही है कि प्रत्येक व्यक्ति को बड़ी पैनी नजरों से, बताए हुए लक्षणों के आधार पर सच्चे त्यागी, महात्मा या संत की पहचान करनी चाहिए। ऐसा साधु-पुरुष किसी भी जाति, धर्म या सम्प्रदाय का हो सकता है । त्याग, विरक्ति आदि सभी गुण किसी मत या पंथ पर निर्भर नहीं हैं। (३) संत और पंथ टेढ़े न होकर सीधे हों प्रत्येक पथिक यह चाहता है कि उसका पथ टेढ़ा-मेढ़ा घुमावदार और ऊबड़-खाबड़ न हो। साफ़, सीधा रास्ता हो तो चलने में सहूलियत होती है तथा मंजिल पर शीघ्र पहँचा जा सकता है। ऊबड़-खाबड़ तथा कंटकाकीर्ण मार्ग पैरों को क्षति पहुँचाता है तथा समय अधिक लगने से पथिक थक जाता है और चलते-जलते ऊब भी जाता है। संत के लिये भी यही नियम लागू होता है। उसका हृदय सरल और शुद्ध हो । साथ ही क्रोध, मान, माया, लोभ, रागद्वेष एवं स्वार्थ रूपी कंटक और कंकर-पत्थर उसके अन्दर न हों तो वह अपने सम्पर्क में आने वाले प्रत्येक प्रात्मार्थी को प्रफल्ल भाव से साधना के मार्ग पर अग्रसर कर सकता है। किन्तु इसके विपरीत क्रोधी या कटुभाषी संत के सामीप्य से प्रत्येक भक्त या शिष्य घबरा जाता है और अशांत होकर दूर भागता है। कहा भी है: "जह कोवि अमयरुक्खो विसकंटगवल्लिवेढितो संतो। ण चइज्जइ अल्लीतु, एवं सो खिसमाणो उ॥" बृहत्कल्पभाष्य गाथा में कहा गया है कि-जिस प्रकार विषैले काँटोंवाली लता से वेष्टित होने पर अमृत-वृक्ष का भी कोई आश्रय नहीं लेता, उसी प्रकार दूसरों को तिरस्कृत करनेवाले और दुर्वचन कहने वाले विद्वान् या संत-महात्मा को भी कोई नहीं पूछता । + Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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