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________________ • अ = जा च नं. तृतीय खण्ड _ल ५ भी करने लगते हैं । ऐसी पुस्तकें लिखने और बेचनेवाले पैसे के लोभ में पड़कर यह विचार नहीं करते कि इस प्रकार का साहित्य व्यक्ति के जीवन को दुर्गुण-युक्त बनाकर उन दोषों के कीटाण समाज में भी फैलाएगा । जिस प्रकार एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है, इसी प्रकार चन्द अनैतिक जीवन जीने वाले व्यक्ति सम्पूर्ण समाज और देश के लिए घातक विष का कार्य करते हैं । अतः ऐसी निकृष्ट पुस्तकों का प्रत्येक को बहिष्कार करते हुए उनके लिखे जाने और छापे जाने पर भी रोक लगाने का प्रयास करना चाहिये। अंत में मुझे यही कहना है कि श्रेष्ठ पुस्तकें जहाँ मनुष्य के जीवन को अमृतमय बना देती हैं, वहीं निकृष्ट पुस्तकें जीवन को विषमय बनाकर छोड़ती हैं। इसीलिये मानव को प्राध्यात्मिक तथा जीवन को सदगुण-सम्पन्न करनेवाली श्रेष्ठ पुस्तकों का चयन करके उनको पढ़ना या उनका स्वाध्याय करना चाहिये । श्रेष्ठ और उच्चकोटि की पुस्तकों के पीछे महान् पुरुषों की सैकड़ों वर्षों की मेहनत और लगन छिपी हुई होती है। उनके अनेक सुन्दर अनुभवों का संकलन होता है और उनके चिन्तन-मनन और ज्ञान का निचोड़ हमें सहज ही प्राप्त हो जाता है। इसलिये हम सहज ही जान सकते हैं कि उत्तम कितावें नरक को भी स्वर्ग बनाने की क्षमता रखती हैं। आप भी उत्तमोत्तम पुस्तकों का चुनाव कर उनका अध्ययन एवं परिशीलन करके अपने जीवन को उच्चता की ओर अग्रसर करें। . 5 . 6 कि . 38 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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