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________________ सत्साहित्य का अनुशीलन समाज एवं देश का सुन्दर निर्माण एवं उत्थान करने के लिए अन्य श्रेष्ठ पुस्तकों का पठन भी लाभप्रद होता है। क्योंकि मानव मानवता से परिपूर्ण होने पर ही आत्मा को सद्गुणसम्पन्न एवं निर्मल बनाते हुए उसे परमात्म-पद की प्राप्ति कराने में सक्षम हो सकता है। पाठय-सामग्री की उपलब्धि इतिहास बतलाता है कि प्राचीन काल में न छापेखाने होते थे और न ही पुस्तकें छपती थीं। भगवान् की वागरणा यानी वाणी और उपदेशों को गणधर आत्मसात करके उन्हें सूत्र रूप प्रदान करके अपने शिष्यों को समझाते थे। तत्पश्चात् वह गूढज्ञान प्राचार्यों के द्वारा शिष्यों को पीढ़ी दर पीढ़ी कंठस्थ कराया जाता था। किन्तु क्रमशः कंठस्थ रखने की धारणाशक्ति का ह्रास होने पर सभी प्रकार के ग्राह्य ज्ञान को लिपिबद्ध करने का प्रयास किया जाने लगा। प्रारम्भ में वृक्षों की छाल, ताड़पत्र एवं भोजपत्रों का इस कार्य के लिये प्रयोग किया गया। आज भी ताड़पत्र पर लिखे हुए धर्म-ग्रन्थ पुस्तकालयों में अथवा संतों के पास अपने गुरुओं के द्वारा अनेक पीढ़ियों से प्राप्त उपलब्ध होते हैं, जिनका मूल्य हज़ारों और लाखों तक का भी आंका जाता है। अनेक बार अख़बारों के द्वारा ज्ञात होता है कि किसी ने अमुक मूल-लिपि का ताड़पत्र अथवा अन्य किसी वस्तु पर अंकित ग्रंथ चुराकर विदेश में जाकर हजारों डालर में बेच दिया। आधुनिक काल में प्रेस या छापाखानों का आविष्कार हो जाने से महान् प्रात्मानों के द्वारा दिया गया उपदेश अथवा ज्ञान बहुत कुछ विस्मृत या लुप्त हो जाने पर भी काफ़ी मात्रा में छप जाने से प्राप्त हुआ है। आज के समय में तो मुद्रण-कला ने तहलका-सा ही मचा दिया है। इस काल को पुस्तकीय-काल कहना उपयुक्त है । आज जितनी भरमार साहित्य के छपने की हो रही है, उसे पढ़ पाना भी संभव नहीं रहा । इसलिये पुस्तकों का बुद्धिमत्तापूर्वक चयन करके पढ़ना आवश्यक है। पुस्तकों का चुनाव कैसे किया जाय ? आत्मोन्नति के इच्छुक प्रत्येक व्यक्ति के समक्ष यह समस्या आती है कि स्वाध्याय के लिये अथवा पठन-पाठन के लिये कैसी पुस्तकों का चुनाव किया जाय ? इसके लिये सर्वप्रथम यह आवश्यक है कि विषयों के अनुसार पुस्तकों को विभिन्न भागों में बाँट लिया जाय । इस समय हम उनके चार प्रकारों पर प्रकाश डाल सकते हैं । यथा--- (१) आध्यत्मिक साहित्यः आध्यात्मिक साहित्य, ऐसा साहित्य है जो 'जन' को 'जिन' बना सकता है। अर्थात् राग-द्वेष रहित वीतरागता को प्राप्त कराता हुअा मानव जीवन के सर्वोत्कृष्ट लक्ष्य, मोक्ष की समाहिकामे समणे तवस्सी जो भ्रमण समाधि की कामना करता है, वही तपस्वी 31 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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