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________________ • 3 री ला च न . सत्साहित्य का अनुशीलन LI ल 45 & 5 .लक vo प्रात्मप्रेमी बंधुप्रो ! अाज हम पुस्तकीय जीवन पर कुछ विचार करेंगे। पुस्तकों का महत्त्व कैसा अनुपम है, यह हम 'बालगंगाधर तिलक' की बात से समझ सकते हैं। उन्होंने कहा था कि: "स्वर्ग में बिना पुस्तकों के रहने की बजाय मैं पुस्तकों के साथ नरक में रहना पसंद करूँगा, क्योंकि पुस्तकों में ऐसी महान् शक्ति है कि वे जहाँ भी होंगी वहाँ स्वर्ग अपने आप ही बन जाएगा।" तिलक के इस कथन से पुस्तकों का महत्त्व कितना अधिक है, यह हम सहज ही जान सकते हैं। वास्तव में ही अच्छी पुस्तके मानव की सर्वाधिक सहायक एवं विश्वसनीय मित्र अथवा साथी होती हैं जो कदम-कदम पर उसका मार्ग-दर्शन करती हैं। उसे चिता, परेशानी और किसी भी प्रकार के संकट के समय में ज्ञानवान् गुरु के समान सत्यासत्य का तथा कर्तव्यों का बोध कराती हैं। पुस्तकें ही हमें प्रेरणा देती हैं तथा काल और क्षेत्र की माँग के अनुसार जीवन को नई और सही दिशा प्रदान करती हैं जिससे व्यक्ति कर्तव्यनिष्ठ बनकर अपने जीवन और मृत्यु दोनों को ही सरस तथा सार्थक बना सकता है । वैसे आज के मानव ने विज्ञान के द्वारा मनोरंजन के अनेकानेक साधनों का निर्माण कर लिया है, किन्तु श्रेष्ठ पुस्तकों का अध्ययन सबसे अधिक स्थायी और सर्वाधिक कम मूल्य का मनोरंजक साधन है । अकेलापन मिटाने का श्रेष्ठतम साधन पुस्तकों से प्रेम करनेवाला व्यक्ति कभी स्वयं को अकेला महसूस नहीं करता । इनके द्वारा उसके अकेलेपन अथवा खालीपन की पूर्ति हो जाती है। क्योंकि पुस्तकें ही एकान्त की एकमात्र एवं उत्तम मित्र होती हैं। उनका अध्ययन करना और उस पर चिंतन-मनन करके अपने विवेक द्वारा मानस-मंथन करते हुए सत्य-बोध रूप अमृत का पान करना अध्ययन का मुख्य उद्देश्य होता है, जो एकान्त-शान्त वातावरण में समुचित रूप से हो जाता है । महात्मा गांधी ने अपने जेल-जीवन की बहुत-सी अवधि उत्तमोत्तम पुस्तकों का अध्ययन करके ही व्यतीत की थी। उनका यही कथन था कि "जो व्यक्ति पुस्तकें पढ़ने में रुचि रखता है वह वन, नगर आदि प्रत्येक स्थान में तथा प्रत्येक परिस्थिति में प्रसन्न और संतुष्ट रह सकता है।" वस्तुतः उच्चकोटि की पुस्तकें जीवन को औरों के लिये आदर्श रूप बना सकती हैं। इंगलिश भाषा की एक कहावत है 28 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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