SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 443
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ • अ मा र्च ज . तृतीय खण्ड 43 मानव के सर्वांगीण विकास के साधन : मानव-विकास के अनेक स्रोत हैं। उनमें एक है साहस । मनुष्य को उच्च आदर्शों के लिये संघर्ष करते समय विष को अमृत मानकर जझना है । जीवन में सफलता पाने के लिये आत्महीनता का त्याग आवश्यक है। जहाँ दृढ विश्वास होता है, वहीं कार्य की सिद्धि होती है। उचित शिक्षा-दीक्षा भी मानव-विकास का एक अपरिहार्य सोपान है। इनसे मनुष्य के आत्मिक एवं भौतिक आयामों को पूर्णता प्राप्त होती है तथा सूक्ष्म एवं स्थूल दोनों ही दिशाओं में उसका सर्वांगीण विकास संभव होता है। मुखा ज्ञान सच्ची विद्या नहीं है; उसका आचरण में उतरना और क्रियाशील होना ही मानव को पूर्णता की दिशा में ले जाता है । .55 लहा वस्तुतः सफलता मनुष्य के सत्प्रयत्न एवं सत्संकल्प में निहित होती है। इस कारण दृढ़-संकल्प एवं अदम्य उत्साह से सावधानीपूर्वक कदम उठाया जाना चाहिए। कोई भी प्रगति तभी प्रशंसनीय होती है, जबकि वह औचित्य लिये हुए हो तथा उच्च उद्देश्य के प्रति समर्पित हो; वैज्ञानिक प्रगति वास्तविक प्रगति नहीं है और न ही भौतिक शक्ति या सत्ता का विस्तार । इस कारण आलस्य, धर्मान्धता, कामुकता, स्वार्थपरकता, भय, संशय, अनस्थिरता, आदि विकारों का त्याग कर मानव बनने और मानवता के प्रति कर्मठतापूर्वक समर्पित होने के लिये कटिबद्ध रहना ही सच्चा मानवीय धर्म है, जो सामाजिक विषमताओं की खाई को पाटने, पूजीवाद को समाप्त करने, अहिंसा को अपनाने तथा निःस्वार्थता को अंगीकार करने में निहित है । इस प्रकार के महान् विचारों द्वारा उद्भूत कर्म महान होते हैं जो देवभूमि की अपेक्षा मानवभूमि को अधिक श्रेष्ठ बनाते हैं । इस हेतु हमें समय का अनवरत सदुपयोग करते रहना चाहिए एवं सत्संग, स्वाध्याय, साधना, अनासक्त भावना, त्रिरत्न के अनुपालन आदि का समन्वित स्वरूप बनकर मानव-विकास के सोपानों को पार करते जाना चाहिए। पर्वो से प्रेरणा-श्रेययुक्त मार्ग पर चलने में पर्यों से अभूतपूर्व अभिप्रेरण होता है। कुछ उदाहरणों द्वारा यह देख लेना समीचीन होगा। पन्द्रह अगस्त का दिवस भारत में मुक्ति-पर्व के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस एक महती तपस्या की सफलता का द्योतक है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस स्वतंत्रता की बुनियाद हिंसा नहीं, अहिंसा है । इसने अहिंसा के महत्तम मानवीय मूल्य को एक जीवन-पद्धति, एक सूक्ष्मास्त्र के रूप में संसार के सम्मुख प्रस्तुत कर सत्य और शान्ति के सरितस्वर निनादित किये हैं, विश्व-युद्धों से जर्जरित मानव के हृदय-मरुथल में । इसी प्रकार रक्षाबंधन का पर्व आत्मशुद्धि एवं सुरक्षा की भावना का पावन अभिव्यक्तीकरण है । जैनों के धार्मिक महापर्व संवत्सरी तथा मानवअभ्युदय के अनन्यतम पर्यषण पर्व की भी यही स्थिति है। इसी परम्परा में विजयादशमी, होलिकोत्सव, दीप-पर्व आदि का उल्लेख भी किया जा सकता है । ये पर्व तन-शुद्धि की अपेक्षा 14 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy