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आँखों देखा सत्य | २२७ मनोमालिन्य के कारण सत्ताईस स्थानक विवाद का विषय बने हुए थे और उनमें ताले लगे हुए थे। इस विवाद को निपटाने का कई प्राचार्यों, उपाध्यायों और मुनियों ने प्रयास किया लेकिन वे सफल नहीं हो सके । महासतीजी सम्वत् २०२५ में चातुर्मास हेतु किशनगढ़ पधारे तो उन्होंने सर्वप्रथम यही उपदेश दिया 'मन के दर्पण पर पड़ी धूल को परस्पर प्रेम तथा सद्भावना से साफ करो।" मैं और श्री धर्मीचन्दजी मोदी ने तो यहाँ तक कह दिया था कि हमारे मरने के बाद हमारी राख भी उड़कर उन स्थानकों में नहीं जायेगी। महासतीजी जिस मकान में ठहरे थे, वहाँ उनके व्याख्यान सुनने के लिए सभी लोग समस्त भेद-भाव भुलाकर जाते थे । एक दिन व्याख्यान के बाद म० सा० ने दोनों पक्ष के लोगों को बुलाया। उन्होंने पाँच मिनट तक मौन रखकर इष्ट का स्मरण किया और सभी को बहुत प्रेम और सद्भाव से कुछ इस तरह समझाया कि लोगों के हृदय परिवर्तित हो गये। दोनों पक्षों के लोगों ने म० सा० को आश्वासन दिया हम आज से सभी विवाद समाप्त कर समझौता करते हैं। स्थानकों के ताले खोल दिये गये। संघ में खुशी की लहर छा गयी । इस प्रसन्नता में जलसे का आयोजन भी किया गया । उत्साहपूर्वक इस प्रेम मिलन का सारा श्रेय महासती 'अर्चना' जी को ही जाता है जिनके अनूठे प्रभाव के बिना यह कार्य संभव न हो पाता । इसके चार पाँच दिन बाद ही मेरी पत्नी को प्रत्यक्ष रूप से स्वर्गीय महासती श्री सरदारकुंवरजी के दर्शन हए
और उन्होंने कहा 'अभी तो अमरु की बहुत ख्याति होगी।' प्राज म. सा. का यशोगान सुनकर हमारा हृदय खुशी से फूला नहीं समाता । वे सुदीर्घजीवन में धर्म की पताका फहराते रहें, यही हमारी मंगलकामना है।
जो जिनशासन की शरण में आ जाते हैं उन्हें गर्म हवाएँ भी नहीं लगती.
आँखों देखा सत्य
0 शिखरचन्द बाफना, जानकीनगर इन्दौर
श्रमणीरत्न महासती उमरावकुंवरजी 'अर्चना' म० सा० जब जानकीनगर पधारे तो लोगों के हृदय में प्रसन्नता और उत्साह का सागर उमड़ पड़ा।
आपके प्रवचन का एक-एक शब्द श्रोताओं के हृदय में उतर जाता है। प्रवचन के संचालन का कार्य मुझे सौंपा गया था। अापके प्रवचन सनकर लोग ग्रापके निर्देशों को जीवन में चरितार्थ करने का संकल्प कर लेते थे। मैंने पापके चमत्कारपूर्ण व्यक्तित्व के बारे में कई लोगों से सुना था। एक घटना के बाद आपके प्रति मेरे हृदय में श्रद्धा और भी दृढ़ हो गयी। एक बार दाल-मिल में अर्द्ध-रात्रि के समय भयंकर आग लग गयी। मैंने एक दिन पहले डेढ़ लाख रुपये के बारदाने खरीद कर मिल में रखे थे। आग लगने की सूचना पाते ही मेरे पैरों तले जमीन खिसक गयी। मैं जैसे ही मिल की तरफ जाने को तैयार हुआ, मेरी माताजी श्रीमती
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