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________________ अर्चनार्चन THI चतुर्थ खण्ड जैन संस्कृति के विविध आयाम भगवान् महावीर की नीति उपाचार्य श्री देवेन्द्र मुनिजी म. कर्म-स्वरूप-प्रस्तुति प्रवर्तक श्री रमेशमुनि म. कर्मवाद के अाधारभूत सिद्धान्त युवाचार्य डॉ. शिवमुनि जैन अनुमान की उपलब्धियां डॉ. दरबारीलाल कोठिया जैन तात्त्विक परम्परामों में मोक्षरूप-स्वरूप राजीव प्रचंडिया एकात्मकता के साये में पली-पुसी हमारी संस्कृति डॉ. भागचन्द भास्कर जैन समाज-दर्शन प्रो. संगमलाल पाण्डेय जैनदर्शन के आलोक में पुद्गल द्रव्य श्री सुकनमुनि म. 'शील' जीवन की सुन्दर उपासना है श्रीमती अलका प्रचण्डिया 'दीति' आध्यात्मिक जीवन का अभिन्न अंग-उपासना कमला जैन 'जीजी' स्याद्वाद की लोकमंगल दृष्टि एवं कथनशैली शान्ताकुमारी धर्मावत तराग और स्थितप्रज्ञ--एक विश्लेषण धर्मचन्द जैन पालंकारिक दृष्टि से श्री उत्तराध्ययन सूत्र : एक चिन्तन मुनि प्रकाशचन्द्र 'निर्भय' धर्म और दर्शन के क्षेत्र में हरिभद्र की सहिष्णता डॉ. सारगमल जैन । प्राचार्य हरिभद्र के ग्रन्थों में दृष्टान्त व न्याय डॉ. दामोदर शास्त्री जैनधर्म में श्रमणियों की गौरवमयी परम्परा विदर्भकेशरी वाणीभूषण श्री रतनमुनि १४३ श्रमण का स्थल-जल-व्योम विहार अनुयोगप्रवर्तक मुनि कन्हैयालाल 'कमल' १४९ आगम का व्याख्यासाहित्य डॉ. उदयचन्द्र जैन १६० जैनधर्म में ईश्वर की अवधारणा सौभाग्यमल जैन १७० जैन और बौद्ध परम्पराओं में नारी का स्थान मुनि नेमिचन्द्र, (शिखरजी) १७५ जैनदर्शन में तत्त्व-चिन्तन सुभाषमुनि 'सुमन' १९४ आज के युग में महावीर की प्रासंगिकता रिखबराज कर्णावट एडवोकेट २०१ वर्तमान समय में जैन सिद्धान्तों की उपादेयता मुनिश्री विनयकुमार 'भीम' २०४ राजस्थानी साहित्य को जैन संत कवियों की देन डॉ. नरेन्द्र भानावत २०७ ९५ धम्मो दीवो संसार समुद्र में धर्म ही दीप है। Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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