SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 418
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सन्तों के आशीर्वाद से मन के विकार ही नहीं तन की व्याधियां भी दूर हो जाती हैं. नवकार मन्त्र का फलित 0 विमला जैन, इन्दौर मुझ निरावलम्ब को सहारा देकर महासतीजी ने जो मेरा उपकार किया उसे मैं कभी नहीं भूल सकती। मेरे सीने में बड़ी-बड़ी गाँठे हो गई थीं जिनके कारण मुझे असह्य पीड़ा होती थी। इन्दौर, उज्जैन आदि के प्रसिद्ध डाक्टरों और हकीमों से मैंने उपचार कराया लेकिन कोई लाभ नहीं हया। हमने डाक्टरों की राय के अनुसार वेल्लर जाकर आपरेशन कराने का निश्चय कर लिया। वेल्लूर जाने से एक दिन पहले उज्जैन से मेरे पिता श्री बसन्तीलालजी सांवेरवाले मुझसे मिलने के लिए आये और एक बार जानकीनगर चलकर परदुःखकातर महासती श्री उमरावकुंवरजी 'अर्चना' म० सा० के दर्शन एवं मांगलिक लाभ लेने का आग्रह किया। उन्हें पूर्ण विश्वास था कि महासतीजी की अनुकम्पा से मेरी बीमारी ठीक हो जायेगी । महाराज श्री के दर्शन करते ही मुझे सुखद अनुभूति हुई । म० सा० ने मुझे मांगलिक सुनाया तथा नवकार मन्त्र एवं जयमलजी म. सा० का जाप करने के लिए कहा । म० सा० श्री के कथनानुसार मैंने घर आकर जाप किया, उस रात मुझे बहुत दिनों बाद आराम की नींद आयी। मेरी अन्तरात्मा मुझे बार-बार कह रही थी कि महासतीजी की कृपा से अवश्य ही निरोग हो जाऊँगी । मैंने वेल्लर जाने का विचार स्थगित कर दिया। मैं प्रतिदिन जानकीनगर जाकर मांगलिक सुनने और जाप करने लगी। अद्भुत चमत्कार था, कुछ ही दिनों पश्चात् गाँठे ठीक हो गईं । डाक्टरों के लिए यह हैरानी का विषय था । अन्तिम साँसों तक मेरे मनरूपी सागर में गुरुणीजी सा० के प्रति श्रद्धारूपी लहरें तरंगित होती रहेंगी। मैं महासतीजी के चरणों में कोटि-कोटि वन्दना करती हूँ। नवकार मन्त्र के जाप से दु:ख और रोग के बन्धन कट जाते हैं, एक श्रावक की लेखिनी से इसी अनुभूत सत्य को अभिव्यक्ति. काटे दुःख के बन्धन । फतहलाल जैन, जावरा यह मेरे लिए सौभाग्य का विषय है कि महासती श्री 'अर्चना' जी की साधना के पचास वर्ष पूरे होने के उपलक्ष में मुझे अपने संस्मरण लिखने का अवसर मिला। मेरी पुत्रवधू श्रीमती कुसुम के सीने में एक बहुत बड़ी गाँठ हो गई थी जिससे हम सभी बहुत परेशान हो गये। डाक्टरों ने केंसर की संभावना भी व्यक्त की थी । अन्तः प्रेरणा से मैं महासती 'अर्चना' जी के सुदर्शनार्थ खाचरौद जा पहुँचा और बीमारी के विषय में उन्हें बता दिया। यह भी कहा कि सम्भवतः आज हास्पिटल में एडमिट Jain Education International For Private & Personal Use Only !! www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy