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________________ ' शत-शत प्रणाम / २१३ ठीक चौदह माह के पश्चात् तुम्हारे घर में सभी प्रकार का आनन्द होगा अर्थात् मृगसिर सुदी द्वितीया को । परिणामस्वरूप पूज्य गुरुवर्या श्री उमरावकुंवरजी म. सा. 'अर्चना' की बड़ी दीक्षा मृगसिर सुदी द्वितीया को चौदह माह बाद सम्पन्न वास्तव में यही अमूल्य एवं दिव्यरत्न है जिन्होंने राजस्थान, पंजाब, काश्मीर, हरियाणा, हिमाचलप्रदेश, उत्तरप्रदेश एवं मध्यप्रदेश आदि अनेक प्रान्तों में भ. महावीर के अहिंसा, अनेकान्त, अपरिग्रह आदि सिद्धान्तों का प्रचार-प्रसार किया व विचरण किया और ऐसे पूज्य गुरुवर्या परम विदुषी, महिमामयी, अध्यात्मयोगिनी, सौम्यहृदया मालवज्योति श्री उमरावकुंवरजी म. सा. 'अर्चना' का जीवन निसन्देह अध्यात्म के पावन मानसरोवर का वह सुषमित, सुरभित शतदल है, जिसके पत्र-पत्र पर सहजानुभूति, योगानुभूति एवं दिव्यानुभूति के प्रेरक लेख उत्कीर्ण हैं। पूज्य गुरुवर्या अपने संयममय जीवन की अर्ध शताब्दी पूर्ण कर रही हैं । आपका यह पचास वर्षीय दीर्घ साधनामय जीवन अध्यात्मजगत के लिए निश्चय ही एक दिव्य ज्योतिर्मय प्रकाशस्तम्भ है, जो साधक-साधिकाओं को प्रात्मोत्कर्ष की दिशा में सदैव प्रेरित करता रहा है, और करता रहेगा। शत-शत प्रणाम - डॉ० शालिनी धारीवाल श्री म. सा. के प्रति अपने मन की भावनाओं को कैसे शब्द दूं-समझ नहीं पाती । स्नेह, ममता की साक्षात् प्रतिमूर्ति और ललाट पर चमकता हुआ प्रोज जिसके समक्ष स्वतः ही शीश नत-विनत हो जाता है। अपार श्रद्धा से ओतप्रोत मन उनके चरणों में शीश नवाकर अपने परम गुरु का आशीर्वाद लेने की प्रेरणा देता है-लगता है उनका वरदहस्त सदैव सिर पर है और यह भावना कष्ट, परेशानी के समय प्रात्मा को बहुत ढाढस बंधाती है, ऐसा लगता है वे हमेशा हमारे आसपास रहते हुए हमारी प्रत्येक गतिविधि को देख रही हैं, राह भटकने पर गलती करने से हमें रोक रही हैं एवम सन्मार्ग की ओर अग्रसर कर रही हैं-वाकई ऐसा हुआ भी है। परेशानी से व्याकुल मन ने जब उन्हें स्मरण किया है, उन्होंने रास्ता दिखाया है और कुछ ऐसा घटनाक्रम होता है कि गलत मार्ग पर चलता व्यक्ति स्वयं ही ठिठक जाता है और अपनी गलती का अहसास करता है और दुबारा वैसी गलती न करने के लिये मन ही मन वचनबद्ध हो जाता है, सुधार का यही सही तरीका भी है । मन पर थोपी हुई, सौगन्ध दिलाई हुई बन्दिशें शायद उतनी सुल Jain Education International For Private & Personal Use Only jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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