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________________ मीठी महिमा / १८७ उसे यह सुगंध प्रदान करेगा। महासतीजी ने कभी भी अपने मुख से इस बाबत अपनी अनुशंसा नहीं की और मौन स्वीकृति से ही निष्कर्ष निकलता है। यही बात महासतीजी की साधना में है जो अनुभूति से ही ज्ञात होती है। लोग संपर्क में आएँ और अनुभव प्राप्त करें, इससे मैं कुछ अधिक नहीं कहूँगा और न ही कहना चाहता हूँ, क्योंकि यह अनुभव की चीज है, जो इसका अनुभव करेगा उसे ही इसकी अनुभूति प्राप्त होगी। इस शुभ-अवसर पर-महासतीजी की कठोर साधना के ५० वर्ष पूर्ण होने के इस अवसर पर-मैं जिनदेव से यही मंगल-कामना करता हूँ कि आप चिरायु और स्वस्थ रहें और आपकी साधना की ज्योति दिन-प्रतिदिन बढ़ती जाए और उसके प्रकाश से अधिकतम जन-कल्याण हो। मीठी महिमा । कुघर हरिसिंह, संखवास (राज.) मैंने अपने जीवन में बाईसा म० सा० श्री उमरावकुंवरजी से बहुत कुछ पाया है और पा रहा हूँ। जब कभी मैं कुछ कहता है, तो बाईसा म० सा० नाराज हो जाते हैं और कहते हैं, यह अब भगवान की कृपा है। मेरी शोभा (प्रशंसा) मत किया करो। लेकिन जब मैं अनेक अद्भुत प्रेरक चमत्कार अनुभव करता हूँ तो गुणीजनों के गुणगान किये बगैर रहा नहीं जाता। १९८७ में खाचरौद चातुर्मास के बाद महासतीजी श्री 'अर्चना' जी म. सा० के दर्शन कराने हेतु मैं मेरी भाणेज भंवरकुंवर को ले गया। उस समय मैं बाईसा के पैरों के नीचे की धूल ले आया था। किसी के दुःख, तकलीफ होती है तो पानी में डालकर दे देता हूँ । कष्ट दूर हो जाता है । हमारे गाँव में एक जाट का लड़का, जिसका नाम सांवतराम है, दसवीं कक्षा में पढ़ रहा था, उसे जिन्न (प्रेत) को बाधा थी। उसकी बड़ी विचित्र विक्षिप्त स्थिति थी। वह अपने परम्परागत धर्म के विपरीत ऐसी धार्मिक क्रियाएँ करता. जिनका उससे, उसके परिवार से कोई लगाव नहीं था। दूसरी अचरज की बात यह थी, वह एक संप्रदाय विशेष, जाति विशेष के व्यक्ति के घर का ही खाना खाता, पानी पीता, जो उसके परिवार में सर्वथा अस्वीकृत है। अपने पिता का वह इकलौता पुत्र है । सभी तरह के उपचार करवाये, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। जोधपुर ले गये । डॉक्टर ने भी जवाब दे दिया। उसे रस्सियों से बांधकर कमरे में Jain Education International For Private & Personal Use Only Hijainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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