SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 378
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दिव्यज्योति : अर्चनाजी / १८५ आपको अध्यात्मयोगिनी, काश्मीर-प्रचारिका, प्रवचन-शिरोमणि आदिआदि उपाधियों से विभूषित किया गया है, यह सचमुच में इन महासतीजी के लिए न सिर्फ शतप्रतिशत सही है, बल्कि अपर्याप्त भी है । उनमें एक ऐसी दिव्यज्योति विद्यमान है जिसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता है। यह मात्र एक अनुभूति की ही बात है, जिसे एक साधारण व्यक्ति भी आत्मसात कर पाता है और हम जैसे लोगों को वह एक चमत्कार सा ही प्रतीत होता है। जैन साधु-साध्वी विशेषकर स्थानकवासी प्रचार-प्रसार से दर ही रहते पाये हैं। क्योंकि इस पथ पर संयम, त्याग और साधना सतत करनी रहती है और साधना का मार्ग भी बहुत ही कंटकाकीर्ण रहता है। ___ महासतीजी श्री उमरावकुंवरजी म. सा. ने अपने जीवन की ५० वर्ष की सफल साधना में देश के दूरस्थ एवं अगम्य स्थानों पर विहार कर देश व समाज को बहुत पास से देखा है और समझा है । आपने प्रत्येक क्षेत्र व धर्म का गहन अध्ययन कर उसका जैनधर्म से समन्वय कर महावीर के अनेकान्त को सही अर्थों में समझ कर अन्यों को भी समझाया है । सभी धर्म मूल रूप से सत् कार्य करने की शिक्षा देते हैं और बुरे कार्यों से दूर रहने को कहते हैं । आपको अनेक क्षेत्रों व धर्मों की सुन्दर उक्तियाँ भी सस्वर कण्ठस्थ हैं। इन सबके साथ-साथ आपने अपनी अंतरसाधना को भी सतत बढ़ाया है और उसकी आभा आज हम सबके सामने है। जो भी व्यक्ति आपके संपर्क में एक बार आ जाता है वह जीवनपर्यन्त इन अविस्मरणीय क्षणों को भूल नहीं सकता है। आपकी साधना व प्रेरक जीवन ने न सिर्फ जैनियों को प्रभावित एवं उत्प्रेरित किया है बल्कि अन्य धर्मों के लोगों व हजारों ग्रामवासियों को प्रभावित कर उनके जीवन को सन्मार्ग पर लाकर प्रेरित किया है। ऐसे लोगों की संख्या जैनियों से कहीं अधिक है और उनकी श्रद्धा भी उनसे ज्यादा है । आपने अपने अनुभव के आधार पर देश और समाज को नयी दिशा ही नहीं दी बल्कि एक रास्ता भी बताया, जिससे व्यक्ति की धर्म के प्रति रुचि एवं आस्था जागृत हुई। आपने धर्म की भी बड़ी प्रभावना की है। आपका प्रकाशित साहित्य जीवन के हर पहल पर गद्य-पद्य में प्रकाशित है और जो भी व्यक्ति बिना आपके संपर्क में आये इस साहित्य के किसी भी एक छोर को पढ़ लेता है, वह उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता है । आपके जीवन के ऐसे कई अविस्मरणीय क्षण हैं जो आज भी लोगों के जीवन में प्रकाशस्तम्भ के समान मार्गदर्शन करते हैं और आपके प्रति अटूट श्रद्धा भी प्रकट करते हैं । ऐसे ही कुछ क्षण मेरे संक्षिप्त संपर्क में देखने को मिले हैं श्री प्रकाशचंदजी सेठी, भूतपूर्व गृहमंत्री भारत शासन, उज्जैन में महासतीजी के सन १९८५ के चातर्मास के समय पाये थे। उनसे सहज चर्चा में मैंने यह कह दिया कि मैं अब जैन महासती श्री उमरावकुंवरजी म. सा. "अर्चनाजी" के दर्शन केलिए जा रहा हूँ, उस समय श्री सेठीजी सपत्नीक थे । उसी समय श्रीमती सेठी के आश्चर्य Jain Education International For Private & Personal Use Only WWW.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy