SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 371
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीय खण्ड | १७८ संकेत मिला और मैं तत्काल इन्दौर म० सा० की सेवा में पहुँच गया। म० सा० श्री को जाकर सारी घटना सुना दी। म० सा० ने नवकार मंत्र व जयमल्ल जी म० सा० का जाप करने की विधि बताई और तत्पश्चात मंगल पाठ सुनकर मैं उज्जैन आ गया। विमल बाबू की आँख की रोशनी पुनः लौट आयी। म० सा० श्री के प्रति हमारे हृदय में जो अगाध श्रद्धा है उसे अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता। मेरी पत्री भी अस्वस्थ रहती थी। प्रसिद्ध डॉक्टरों के उपचार से भी उसे स्वास्थ्य लाभ न मिला। सौभाग्य से वह अब बिल्कुल स्वस्थ एवं प्रसन्न है। उसकी स्वस्थता का कारण यह बना कि एक रात्रि उसने स्वप्न में म. सा. श्री का वरदहस्त अपने सिर पर रखे देखा तो वह तत्काल उठकर बोली, पापा अब मैं बिल्कुल स्वस्थ हूँ। तब से अब तक कोई बीमारी नहीं हुई । आप अपनी साधना से लोककल्याण करते रहें यही हमारी मंगल-कामना है । सन्तों की चरणरज अनेक व्याधियों को दूर कर देती है. चरण धूलि ने काम किया अमृत का आदर्शलता दफ्तरी, सुभाषनगर अजमेर पूज्य श्री उमरावकुंवरजी अर्चनाजी म. सा. की हमारे पूरे परिवार के प्रति बड़ी कृपा है । मेरा जीवन अनेक कठिनाइयों से गुजरा। मैं अपने मन की व्यथा पूज्य गुरुणीजी म. सा. के अलावा किसी से नहीं कह सकती थी। मेरी दर्द कहानी सुनते ही म. सा. द्रवित हो जाते थे और जब कभी भी मुसीबत आती है मुझे म. सा. के द्वारा बताया गया नाम ही संबल देता है। इस संदर्भ में मुझे एक घटना याद आ रही है। एक बार सन् १९७९ में मैं बहुत बीमार हो गई। मेरा शरीर पूरा शून्य हो गया और मुह पीछे घूम गया । मेरे शरीर में असाध्य वेदना थी। डा. को कुछ भी समझ में नहीं पा रहा था। अचानक मेरे अन्तर् में प्रेरणा जगी और म. सा. की बड़ी बहन श्री सौभागकुंवर बाई से मैंने म. सा. के पैरों के नीचे की धूल मँगाई व पानी में डालकर ग्रहण की तत्काल मेरा मुह सीधा हो गया और शरीर कि कई बीमारियाँ खत्म हो गईं। इसके अतिरिक्त घर की, छोटी-बड़ी परेशानियों से भी मुक्ति मिली । म. सा. श्री हमेशा पूज्य जयमल्ल जी म. सा. व नवकार मंत्र का जाप करवाते । परम पिता परमात्मा से मैं प्रार्थना करती हूँ कि म. सा श्री का वरदहस्त हमेशा मेरे सिर पर बना रहे । आप अपनी साधना से लोक-कल्याण करते रहें यही हमारी मंगल कामना है। Jain Education Hernational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy