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________________ वरदहस्त | १७७ करवाने गई तो उसे भयंकर तकलीफ हो गई। चार पुरुष और कुछ स्त्रियों, कुल दस प्रेतात्माओं ने उसके शरीर में प्रवेश कर लिया जिससे हम सभी परिवार के लोग अत्यन्त परेशानी में पड़ गये। इतना उपद्रव हुआ कि हमने उनके जीवन की आशा छोड़ दी। जब वह मृत्यु से संघर्ष कर रही थी, अचानक म० सा० श्री अर्चनाजी को । हाथ में रजोहरण (ौघा) लेकर आते हुए देखा । म० सा० ने मांगलिक सुनाया, तत्काल महीनों से उपद्रव करने वाली प्रतात्माओं ने उनका शरीर छोड़ दिया और भंवरकुंवर ने नवकार मंत्र का जाप करते हुये अपने आपको पूर्णरूप से स्वस्थ, सूखी एवं प्रसन्न पाया। यह चमत्कार हमने प्रत्यक्ष देखा जबकि म० सा० से हमारा न परिचय था और न ही उनका नाम सूना था। इस अज्ञात कृपा से एवं चमत्कार से हमारे पूरे परिवार पर जैनधर्म का एवं नवकार मंत्र का अमिट प्रभाव पड़ा। स्वस्थ होते ही मेरी मामी ससुर हरिसिंहजी के साथ म. सा. श्री के दर्शन लाभ प्राप्त करने गयी । पन्द्रह दिन सेवा में रहने के पश्चात् जो-जो चमत्कार व दृश्य दिखाई दिये मुझे पाकर बताए । मैं सुनकर विस्मित हो गया । श्री अर्चनाजी की कृपा से ही भंवरकुंवर मौत के मुंह से बच सकी । मैंने अभी तक महासती अर्चनाजी का साक्षात रूप नहीं देखा है लेकिन यह सब भंवरकुंवर और हरिसिंहजी के माध्यम से जान सका हूँ और समय मिलते ही म० सा० श्री की सेवा में उपस्थित होने की भावना रखता हूँ। ____ मैं महासतीजी के दीर्घजीवन की हृदय से मंगल कामना करते हुये उन्हें शतशत प्रणाम व वन्दना करता है। महासतीजी को अनुकम्पा से आंख की रोशनी लौट आई. वरदहस्त पारसमल चौरड़िया, उज्जैन पूज्य महासती श्री उमरावकुंवरजी 'अर्चना' म० सा० का सन् १९८५ का चातुर्मास धर्मस्थली उज्जैन में हुआ । मैंने म० सा० श्री की साधना के सम्बन्ध में चमत्कारपूर्ण बातें सुनी थी, लेकिन अटल विश्वास तब हुआ जब आपकी कृपा से मेरे पुत्र विमलकुमार एवं मेरी पुत्री को स्वास्थ्य लाभ हुआ। मेरे पुत्र की दुकान पर बैठे-बैठे अचानक एक आँख की रोशनी गायब हो गई, हम सब घबरा गये। बच्चे की चौबीस वर्ष की उम्र में रोशनी का चला जाना कितना परेशानी का कारण बना, यह हम ही जानते हैं । हम उसे लेकर इन्दौर, मद्रास तक के विशेषज्ञ चिकित्सकों को दिखा पाये किन्तु लाभ कुछ नहीं हुआ। म० सा० श्री का विहार तब तक उज्जैन से इन्दौर की ओर हो चुका था और वह तुकोगंज, हर्षदभाई गुजराती के बंगले पर विराज रहे थे। मेरी पत्नी को एक रात्रि अज्ञात शक्ति द्वारा Jain Education International For Private & Personal Use Only Marijainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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