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________________ द्वितीय खण्ड / १७४ माताजी ने मुझे दो तीन बार पहले भी दर्शन करने के लिए कहा था, क्योंकि मेरो रुचि "योग" की तरफ थी और महासती श्री भी योग के अच्छे जानकार हैं, लेकिन मैं हर बार टाल जाता था। महासतीजी ने एक बार माताजी से बात-बात में कहा था कि उसे एक बार लामो, हो सकता है कि बाद में शायद फिर वह स्वयं ही चला आया करे । यह मुलाकात सिर्फ दो मिनिट की ही हुई थी लेकिन आपको देखने के बाद मन में प्रसन्नता और बाद में फिर मिलने की इच्छा हुई। उसके बाद आपके दर्शन राजमोहल्ला उपाश्रय में युवाचार्य श्री मधुकर मुनि के देवलोक होने के दिन हुए । उसी दिन मेरी धर्मपत्नी चढ़ाव से फिसलकर गिर पड़ी थी एवं उसकी तबीयत दिन-प्रतिदिन बिगड़ने लगे थी। उस समय वह गर्भवती भी थी। तीसरी बार आपके दर्शन जानकीनगर उपाश्वय में अपनी बीमार पत्नी के साथ किये एवं मांगलिक सुना । मैंने पत्नी का बहुत इलाज कराया लेकिन उसकी हालत दिन-प्रतिदिन बिगड़ती ही जा रही थी। खाना-पीना छूट चुका था। उसे जो कुछ भी खाने को देते, सब वमन हो जाता। उसके लिए खड़ा रहना भी मुश्किल हो गया था। इस प्रकार एक महीना बीत गया। उसके बाद महासतीजी ने कहा कि आप इसे मत लाया कीजिए, क्योंकि इसका स्वास्थ्य गिर रहा है। मैंने आपकी बात मान ली । मेरा स्वयं का आना एवं मांगलिक सुनने का क्रम चलता रहा। इस अन्तराल में दो बार गर्भ गिराने का प्रसंग महासतीजी के सामने चला लेकिन आपने हर बार मना किया और कहा कि "धैर्य रखो, धर्म पर श्रद्धा रखो", सब ठीक होगा। १५ दिन और बीत गये। इलाज चलता रहा पर तबीयत बिगड़ती चली जा रही थी। शरीर में कमजोरी इस कदर आ गई थी कि वह स्वयं का हाथ ऊपर उठाने में भी कष्ट अनुभव करती थी। ऐसी परिस्थिति में १६ वें दिन आपरेशन का निर्णय डाक्टरों ने लिया । आपरेशन में “एपेडिक्स” सड़ा हुआ निकला। डाक्टरी रिपोर्ट के मुताबिक अगर १-२ दिन आपरेशन और नहीं होता तो बचना मुश्किल था । इसके बाद धीरे-धीरे स्वास्थ्य में सुधार होता गया। समय पर लड़का हुआ। लड़के की जन्मकुण्डली बनवाने पर पता चला कि लाखों में कोई एक लड़का ऐसा होता है, जिसकी माँ उसके जन्म के बाद बचती है। इस घटना से महासतीजी के प्रति मेरे मन में अटूट श्रद्धा उत्पन्न हो गयी । तब से आज तक लगातार आपके संसर्ग में हूँ। इस अल्प लेकिन बहुमूल्य समय में आपमें जो देखा, जाना, पाया उसके आधार पर कह सकता हूँ कि आप धैर्य, कोमलता, समता, आत्मानुशासन, प्रसिद्धि से बचने की कोशिश करना, अक्रोध, अपनापन, किसी बात को समझाने का सरल तरीका आदि अनेक अर्चना के योग्य अनेक गुणों की धनी हैं । इस अन्तराल में मेरा केन्द्र में (हरि ॐ योग केन्द्र राजवाड़ा ब्रांच-इन्दौर) नियमित रूप से आना जाना बना हया था। एक दिन मैंने केन्द्र के प्रशिक्षक श्री चन्द्रशेखरजी आजाद से कहा कि हमारे महासतीजी भी योग में रुचि रखते हैं व आपसे मिलना चाहते हैं । (महासतीजी ने चर्चा के दौरान एक बार कहा था कि आजकल योग के संबंध में लोग बहुत रुचि ले रहे हैं। इस रुचि का दुरुपयोग करते हुए कुछ लोग दूसरों को गुमराह कर रहे हैं। इसलिए तुम्हारे जो प्रशिक्षक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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