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________________ सहायता की विध्यलोक के देव ने / १६९ हो तो घण्टों प्रवचन भी देते हैं। मुझे परम प्रसन्नता है कि रतनदेव समय-समय पर महासतीजी 'श्री अर्चना' की सेवा में उपस्थित होते रहते हैं और अध्यात्म विषय पर घण्टों चर्चा करते हैं। म० सा० के ध्यानोपदेश से हमारी धर्म के प्रति आस्था अधिक दृढ हुई है। आपके चरणों में बैठकर अनन्त सुख मिलता है। मनुष्य तो क्या देवों को भी तत्त्वबोध देने वाले म. सा. के श्रीचरणों में मैं शतशत वन्दन करता हूँ। मन ज्ञान की गंगा में न्हाता है तो पापों की तपन स्वतः ही बुझ जाती है. सहायता की दिव्य लोक के देव ने । श्रीमती कंचनदेवी मेहता, ब्यावर पूजनीया गुरुणी श्री उमरावकुंवरजी 'अर्चना' म. सा. के प्रति मेरे हृदय में उनकी आत्मसाधना के प्रबल प्रभाव स्वरूप अनन्त श्रद्धा है। जब म. सा. कश्मीर से पधारे तब मैं सदैव उनकी सेवा में जाने लगी। उनके दिव्य व्यक्तित्व एवं अनुकरणीय ज्ञान-ध्यान की साधना से मेरा हृदय बहुत परिवर्तित हो गया। दिन हो या रात में अधिक समय आपके ही सान्निध्य में व्यतीत करने की इच्छा रखती थी। मेरी श्रद्धा पर परिवार वालों ने यह सोचकर प्रश्नचिह्न लगा दिया कि कहीं मैं दो छोटे बच्चों को छोड़कर साध्वी न बन जाऊँ। मैंने विरोध की चिन्ता नहीं की । मेरा श्रीचरणों में आना जाना एक दिन के लिए कम नहीं हुआ । मैं विहार में भी प्रायः म० सा० के साथ रही। जब मेरे अनज चाँदमल पालरेचा कार दुर्घटनाग्रस्त हुए उस समय म० सा० कचेरा विराज रहे थे, उसी समय अन्तःअनुभूति से उन्हें दुर्घटना का पता चल गया । म० सा० ने इसके विषय में अन्य साध्वियों को बता भी दिया कि उन्होंने चाँदमलजी को देखा है, वह यह कहकर गये हैं कि मैं जा रहा हूँ, मेरी बहिन का ध्यान रखना। तीसरे दिन यह खबर समाचार पत्र में पढ़कर सभी सतियों को आश्चर्य हुआ । मेरे भाई के निधन के थोड़े दिन के बाद ही अद्भुत घटनायें घटित होने लगीं, जैसे बन्द तिजोरी से गहनों का गायब हो जाना, सूखे कपड़ों का गीला हो जाना। मैं प्रशान्त मन से म. सा. के पास गई। आपने मेरी मनोव्यथा ध्यानपूर्वक सुनी और आश्वस्त रहने के लिए कहा ! भाग्योदय से म० सा० कुचेरा से विहार करके ब्यावर पहुँचे । मेरी भाभीजी को मांगलिक सुनाने के लिए घर पर पधारे । मांगलिक सुनते ही हमें यह देखकर हर्ष के साथ विस्मय भी Jain Education International For Private & Personal Use Only HIMw.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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