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________________ Jain Educalon International द्वितीय खण्ड / १६४ चमत्कार जुड़े हैं । हम लोग उनकी शवयात्रा से लौट रहे थे कि किसी दैविक शक्ति का मेरे शरीर में प्रवेश हो गया। वर्षों तक इस शक्ति का मुझ पर प्रभाव रहा । इसकी प्रेरणा से मुझे होने वाली घटनाओं का पूर्व आभास हो जाता था एवं मेरी अनेक मनोकामनाएँ भी पूर्ण हुईं। सभी लोग आश्चर्यचकित थे । मुझे महासतीजी उमरावकुंवरजी म० सा० से संबंधित एक प्रसंग याद आ रहा है । मैं अपने पिताश्री मनोहरसिंह चण्डालिया के साथ कार में सफर कर रही थी कि अचानक देवी ने महासती श्री 'अर्चना' जी के उदयपुर चलकर दर्शन करने के लिए प्रेरित किया । पिताजी ने समयाभाव कहकर बात टाल दी । तभी एक अनहोनी हुई और कार वहीं रुक गई। पिताजी ने देवी से क्षमा मांगी और उदयपुर महासतीजी के दर्शन करने का निर्णय किया ही था कि कार चल पड़ी । कार जंगल में दो घण्टे तक रुकी रही लेकिन फिर भी समय से पूर्व उदयपुर पहुँच गयी । हम महासतीजी के दर्शन कर प्रत्यधिक प्रानन्दित हुए । दैविक शक्ति से प्रेरित होकर महासतीजी के साथ मैंने घण्टों आत्म-साधना के संदर्भ में विचारविमर्श किया । महासतीजी के जीवन का तप और त्याग अनुकरणीय है, मैं भगवान महावीर से प्रार्थना करती हूँ कि आप साधना पथ को बुलंदियों को स्पर्श करें । तपस्या निश्चेतन में नयी चेतना जगाती है जिससे अधिक सूक्ष्म नया और श्र ेष्ठतर स्पन्दन बाहर आता है. अज्ञात से अनूठे संकेत [ चतरसिंह जैन, खाचरौद जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियों और मार्गदर्शन के प्रभाव के कारण मैं नास्तिक बन गया था। जैन परिवार में जन्म लेने पर भी मैं जैन-जीवन पद्धति से दूर था। मैंने न कभी उपवास किया था और न ही कभी स्थानक में पाँव ही रखा था, लेकिन जब अध्यात्मयोगिनी काश्मीरप्रचारिका श्री उमराव कुंवरजी 'अर्चना' म० सा० के दर्शन किये तो मेरे शुष्क हृदय में धर्म का अंकुर फूट पड़ा । आपके प्रवचन सुनकर मन का सारा कलुष बाहर आने के लिए बेचैन होने लगा । महासतीजी की कृपा से मैंने (४९) उनपचास दिन की तपस्या की । उस तपस्या से मन स्वच्छ एवं निर्मल हो गया । इस अवधि में मुझे कुछ दिव्य अनुभव भी हुए । तपस्या के सैंतालीसवें दिन अन्तःकरण से आवाज आई कि महासतीजी के चरणचिह्न लेकर अपने पास रखो ! बड़ी प्रार्थना के बाद मुझे केसर अंकित चरणचिह्न मिल सके । चालीस वर्षों से त्रिविध ज्वालाओं से संतप्त मेरा मन शीतल हो गया । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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