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________________ आत्मसाधना का अनूठा आनन्द | १६३ माँ अपने शिशु को दुखी नहीं देख सकती उसी प्रकार आपने मेरे कष्ट के बन्धन को काटने का जैसे संकल्प कर लिया था। परिणामतः लगभग १४-१५ दिन में मैं स्वस्थ हो गया। जब मेरा व्यवहार पूर्णतयाः सामान्य हो गया तो आपने मुझे किसी बन्धु के साथ ब्यावर भेज दिया। यदि महासतीजी की मुझ पर कृपा न होती तो मैं आज भी विक्षिप्तावस्था में कहीं दीवारों से सिर टकराता होता। लोग मुझ पर हँसते और पत्थर मारते। मेरी यही कामना है कि ईश्वरतुल्य महासती श्री अर्चनाजी युग-युगों तक मुझ जैसे दुखियों के बंधन काटती रहें। जब स्वप्नदर्शन के माध्यम से श्रावक की विविध ज्वालाएँ शांत हो गयीं. असीम है आस्था - राजेशकुमार बागरेचा, खाचरौद मूर्तिपूजक परिवार से सम्बन्ध रखने पर भी जब मैं महासतीजी श्री उमरावकंवरजी म. सा. 'अर्चना' के दर्शनार्थ स्थानक में गया तो अापके प्रवचन सुनकर श्रद्धानत हो गया, आपके व्यवहार में अत्यधिक सरलता व असीम स्नेह है । मेरी माताश्री कंचनदेवी भी ध्यानयोग सीखने के लिए आपके पास नियमित रूप से जाती रही हैं। आपने अनेक बार स्वप्न के द्वारा मेरी समस्या का समाधान किया है । मैं जब-जब आपके श्रीचरणों में नतमस्तक होता हूँ तो मुझे लगता है कि जैसे श्रीचरणों से प्रेम और करुणा की निर्मल व पावन धारायें प्रवाहित हो श्राविका का महासतीजी की आत्मसाधना से संबंधित संस्मरण. आत्मसाधना का अनूठा आनन्द । कमलादेवी रूनवाल, जयपुर कभी-कभी जीवन में घटित एक घटना समस्त जीवनचक्र को प्रभावित कर देती है । मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही घटित हुआ। महासती श्री झमकुजी म. सा. को पैंतालीस दिन का संथारा पाया था। संथारा के साथ अनेक अलौकिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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