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दिव्य सौरभ | १५५
चल रही थी, मुझे परीक्षा देने के लिये हदंडी जाना था, जैसे ही काम से बाहर निकला कि साइकिल पंचर हो गई। मझे ठीक समय पर पहंचना था। महाराज श्री के बताये अनुसार मैंने पूज्य जयमलजी महाराज का नाम लिया, तीन कि० मी० मैं उसी साइकिल से परीक्षा के ठीक समय पर पहुँच गया ।
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आराध्य चरण में वन्दन हो, कोटि-कोटि अभिनन्दन हो.
दिव्य सौरभ हर्षदभाई जैन-जयाबेन, इन्दौर
महासतीजी उमरावकुंवरजी म. सा. "अर्चना" जी के प्रति हमारे मन में जब से उनके दर्शन किये तभी से श्रद्धा तो थी ही, लेकिन हमारे घर से कालेज नजदीक होने के कारण छोटी सतियों को परीक्षा दिलवाने के लिए हमारी आग्रह भरी विनती मानकर हमारे बंगले पर पधारे। जिस कमरे में म० सा० श्री जी ध्यान करते थे अाज भी उस कमरे में अलौकिक सुगंध आती है। हमारे मुहल्ले के लोग बहुत पूछते रहते हैं कि आप के बंगले से यह कैसी सौरभ पाती है ? लेकिन आश्चर्य की बात है दो तीन बार उसी कमरे में दूसरे साध्वीजी विराजे तो वह सुगन्ध गायब हो गई। जैसे ही उन लोगों ने विहार किया फिर से हमने म० सा० श्री को विनती की, चार पाँच बार कृपा करके हमारे यहाँ पधारे। इस सुगन्ध के साथ और भी कई अनुभव होते रहते हैं । जब भी हम म० सा० श्री के सामने बैठते हैं, चाहे प्रवचन में या ऐसे ही, तो मेरा एकदम ध्यान लग जाता है और अद्भुत आनन्द का अनुभव होता है । कई प्रकार के दृश्य नजर आते हैं । हमारे हृदय की श्रद्धा अमिट है।
हम अपने हृदय से हार्दिक शुभ कामना भेंट करते हुए म० सा० श्री के दीर्घजीवन की मंगल कामना करते हैं ।
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