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________________ दिव्य जीवन की चमत्कारिक घटना / १५३ मेड़ता में घटित एक घटना के संबंध में भी श्रद्धय श्री सरदारकुंवरजी महाराज एवं महाराजश्रीजी की बड़ी गुरुबहिन श्री झनकुजी महाराज सा० ने मुझे बताया कि पूज्य गुरुदेव स्वर्गीय श्री हजारोमलजी महाराज आदि ठाणा ४ से मेड़ता विराज रहे थे और उनके प्रवचन में हम तीनों ही गये। वापस आये तो स्थानक में कोठरी का दरवाजा अन्दर से बन्द हो गया । मोहल्ले वालों ने जी जान से ग्यारह-बारह बजे तक दरवाजा खोलने की कोशिश की लेकिन प्रयास निष्फल हुआ । मन में कुछ पढ़कर जैसे ही अमरू ने हाथ लगाया कि तत्काल किवाड़ खुल गया। महाराजश्री को गुरुणीजी महाराज और झनकुकुंवरजी अमरू के नाम से पुकारते थे क्योंकि हमारे घर में भी कभी इनको किसी ने लड़की के नाम से नहीं पुकारा । किवाड़ खुलने का रहस्य कुछ और भी हो सकता है किन्तु उस दिन जो बात बनो वह इस प्रकार है उसी रात्रि को आपने स्वप्न में मेरे देवरजी स्व० श्री चम्पालालजी को स्वर्ग में देखा और प्रातः गुरुणीजी महाराज को बताया तो हंसते हुए गुरुणोजी महाराज ने कहा तेरे अन्तर्मन में उनके प्रति अनुराग है इसलिए समय-समय पर दिखाई दे जाते हैं । बड़ी के सामने जवाब तो देना नहीं था, किन्तु मन में जरूर खेद हुआ कि उनके मन में किसी भी प्रकार का कोई राग-भाव नहीं है । व्याख्यान के बाद यह सब कुछ घटा। कमरे का सारा सामान अस्त-व्यस्त था। गुरुणीजी महाराज ने कहा तुम्हारे कथन की सच्चाई मैं स्वीकार करती हूँ । इस प्रकार अनेक बार नाना रूपों में वे दिखाई देते रहे हैं। यह तो निश्चित है कि मेरे देवरजी की गति बहुत ऊँची है । वे कौन से स्वर्ग में हैं, यह तो मैं नहीं जानती पर उनका सहयोग महाराजश्री को जरूर मिलता होगा। इस संबंध में विशेष चिन्तन तो अनुभवी लोग ही कर सकते हैं। मुझे हादिक प्रसन्नता एवं गर्व है कि इस पथ पर बढ़कर हमारे कुल को और अपने जीवन को गौरवान्वित किया है। इनके पीछे ही हम लोगों की पहचान होती है। हृदय की यह कामना है कि मेरी आयु भी आपको लग जाये और कल्याण करते हुए संयम पथ पर अविराम गति से बढ़ते रहें। दिव्य जीवन की चमत्कारिक घटना - पुखराज एवं इचरजकुंवरबाई विनायक्या, तबीजी पूज्य महासतीजी श्री उमरावकुंवरजी "अर्चना" की ५० वीं दीक्षा-स्वर्णजयंती मनायी जा रही है और अनेक भक्त एवं विद्वान् अपने भावपूर्ण लेख और निबन्ध, कविताएँ आदि देंगे। हमें तो सिर्फ इनसे जो कुछ पाया वह सत्य बात हो लिखनी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only viwww.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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