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________________ द्वितीय खण्ड / १५२ के लिए मना कर दिया। रात को वह छुरा लेकर मकान में घुस आया और मेरी गर्दन पर निरंतर प्रहार करता रहा । लेकिन छरा धार की तरफ से न लग कर उल्टा लगता रहा । मेरे थोड़ी बहुत चोट आयी, लेकिन वह जिस इरादे से पाया था वह पूरा नहीं हुआ । मैंने महाराजश्री का नाम लेकर जोर से बाहर आवाज लगायी-'कमबख्त छुरे की धार भी काम नहीं कर रही है" यह कहते हुए वह भाग खड़ा हुआ । मुझे लगा, मेरे पास में सहायता के लिये कोई खड़ा है, वह महाराजश्री हो सकते हैं। आज भी मैं महाराजश्री के पैरों नीचे की रेत अपने पास रखती हूँ, छोटी-मोटी बीमारी वाले लोग आते हैं, उन्हें वह पानी में डालकर दे देती हूँ। जिन्हें विश्वास है, उनके ठीक भी हो जाता है। ___ मेरे मन को यह विश्वास है कि अधिकतर महाराजश्री की सेवा में मेरे स्वर्गीय देवरजी श्रीयुत चम्पालालजी सा० रहते हैं । क्योंकि उनका जीवन बहुत ही सात्विक एवं त्यागमय था और महाराजश्री के प्रति जब वे गृहस्थपन में थे, अत्यधिक स्नेह था। देहावसान के बाद भी वे जब महाराजश्री गहस्थपन में थे समयसमय पर दिखाई देते थे और सन्देश भी दे जाते थे। उनके द्वारा दी गयी सूचना शतप्रतिशत सत्य होती थी। दीक्षा में भी उनका अज्ञात रूप से काफी सहयोग रहा । दीक्षा के एक दिन पूर्व की घटना है- स्व० श्रद्धय पूज्य श्री गुरुणीजी श्री सरदारकुंवरजी महाराज सा० ने उन लोगों को बताई और श्रीमान् रतनचन्दजी चौरड़ियाजी के माताजी ने बताई । जब आप (श्रीमहासती पूज्य उमरावकुंवरजी 'अर्चना') चौरड़ियाजी के यहाँ से भोजन करके स्थानक की और पा रहे थे। साथ में बहत से भाई भी थे, रास्ते में खड़ा एक युवक योगो के भेष में मिला, उसने ऐसी-ऐसी बातें बताईं जिनको सुनकर सभी को आश्चर्य हो रहा था जैसे कि वह महाराजश्री के जनम से ही साथ रहा हो । उसने अपने अंगूठे को दबाकर दूध की धारा बहाई। वह पानी के नाले की तरह बहुत दूर तक चली गई । पास में पड़े बड़े पत्थर को उठाकर अपनी हथेली में सुपारी के रूप में दिखाया। इस प्रकार के चमत्कार देखकर वहाँ पर खड़े लोग चकित थे । उस समय रतनचन्दजी के माताजी ने कहा, बाई सा० कल चारित्र धर्म स्वीकार कर रहे हैं इनका भविष्य कैसा रहे गा । उसने तत्काल कहा--"यह छः महीने भी साधुवेश में नहीं रह सकेगी, भयंकर कष्ट का सामना करना पड़ेगा। अच्छा है यह साध्वी न बने । इसीमें इसका भला है ।" यह जोगी की भविष्यवाणी सुनकर उपस्थित सभी लोग विचार में पड़ गये-बाई सा० अभी कुछ नहीं बिगड़ा है । सिद्ध पुरुष की सभी बातें सच निकली तो इस बात पर भी विश्वास करना चाहिए। उस समय आपका रूप एकदम बदल गया, आँखों में रक्त उतर आया मानो दुर्गा का ही रूप हो । जोगी को इस प्रकार ललकारा की वह तत्काल यह कहते हुए अदृश्य हो गया कि मैंने सिर्फ परीक्षा ली थी। मुझे लगता है मेरे देवरजी ही उस रूप में आये होंगे। Jain Education national For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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