________________
मैंने स्वास्थ्य लाभ लिया | १४७
लगे कि एकाएक मेरी पत्नी मूच्छित होकर भूमि पर गिर पड़ी। उसे ब्रेन हेमरेज हो चुका था। हम उसे तत्काल हो टी-चोइथराम अस्पताल ले गये । उसे उपचारार्थ अस्पताल में भरती कर दिया । इसके पश्चात् हम महासतीजी की सेवा में पहुँचे। प्रवचन समाप्त होने के पश्चात् हमने आपबीती बताई। साथ ही मंगलवचन सुनाने का आग्रह भी किया। महासतीजी पर-दुःखकातर हैं। आप तत्काल ही टीचोइथराम अस्पताल के लिये रवाना हो गईं, लगभग पाँच, छः किलोमीटर चलकर आपने मेरी पत्नी को दर्शन देने की कृपा की। किसी को भी उनके बचने की आशा नहीं थी। डॉक्टरों का कथन था कि यदि ये बच भी गईं तो पूर्व की अवस्था में आना कठिन है । डॉक्टरों के अथक प्रयास से मेरी पत्नी का जीवन तो बच गया किन्तु वह अपने जीवन की पूर्वावस्था को प्राप्त नहीं कर पाई। उसे दवाई आदि कुछ भी दिया जाता तो यही कहकर देते कि महाराजश्री ने भेजा है। तभी वह लेती, अन्यथा नहीं । वह उस समय यह भी कहती-"तब तो ले लूंगी।" उसकी ऐसी स्थिति काफी समय तक चलती रही । महासतीजी से निवेदन किया कि ऐसा कब तक चलता रहेगा । उसे जब कोई वस्तु आपका नाम लेकर देते हैं तो ले लेती है, अन्यथा नहीं लेती है। हमारे इतना बताने पर महासतीजी जानकीनगर से टीचोइथराम अस्पताल पहुंचे। मेरी पत्नी ने जैसे ही महासतीजी के दर्शन किये, उसकी मूर्छा दूर हो गयी अब वह पूर्ण चेतनावस्था में आ गई। उसने महासतीजी को वन्दन किया और परिवार के सभी सदस्यों को आपके मंगलवचन सुनने की प्रेरणा दी। इसके साथ ही उसने एक लाख ग्यारह हजार रुपये गरीबों के उपचार के लिये दिये । महासतीजी की उपस्थिति में ही हमने एक शिविर भी लगवाया था। आज मेरी पत्नी पूर्ण रूप से स्वस्थ एवं प्रसन्न है। हम समय-समय पर महासतीजी के दर्शन करने के लिये उनकी सेवा में उपस्थित होते रहते हैं । शासनदेव से प्रार्थना है कि महासतीजो म० सा० जिनधर्म की प्रभावना करते रहें एवं भूले-भटके दुखियों को सन्मार्ग दिखाते रहें तथा हम उनके आदेशानुसार श्रावकधर्म का पालन करते रहें।
साध बड़े परमारथी घन ज्यों बरसे आय । तपन बुझावे और की अपनो पारस लाय ॥ मैंने स्वास्थ्य लाभ लिया श्रीमती सुशीला बेताला, जानकीनगर इन्दौर
प्रातःस्मरणीय, परमश्रद्धय, अध्यात्मयोगिनी, परमविदुषी महासती श्री उमरावकुंवरजी म. सा. 'अर्चना' के मुझ पर जो उपकार हैं, उन्हें मैं अपने जीवन की अन्तिम साँस तक नहीं भूल सकती हूँ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org