SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 319
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीय खण्ड | १३२ तो आप तुरन्त स्थिति को सम्भाल लेते थे। इस प्रकार मुझे आपके सान्निध्य में पुनर्जीवन मिला। गुरुणीजी म० सा० बड़ी ही दयालु और कृपालु हैं। हमारे साध्वी-वर्ग में किसी को भी जब कभी कोई व्याधि हो जाती है तो आपकी मांगलिक से तत्काल स्वास्थ्य लाभ हो जाता है । ऐसे अनेक चमत्कार मैंने आपकी सेवा में रहते देखे हैं स्वयं मेरे जीवन में भी अनेक ऐसे प्रसंग आये हैं। आपकी कृपा से सब ठीक हो जाता है । जो परदुःखकातर है वह स्वयं अपने स्वास्थ्य की कभी कोई चिंता नहीं करता । यही स्थिति पूजनीय गुरुणीजी म० की भी है। आपको अनेक व्याधियां हैं जिनके लिये आप कभी भी चिंतित दिखाई नहीं दी और समभाव से सब कुछ सहन करते हुए भी आपका जीवन सेवा में ही लगा रहता है । सेवा करने का उपदेश तो बहुत देते हैं, प्रचार-प्रसार भी बहुत करते हैं किंतु आप इन सब से दूर रहकर सेवा के प्रति पूर्णत: समर्पित हैं। आपको मौन सेवी की संज्ञा से अभिहित किया जावे तो अतिशयोक्ति नही है। दीन-दुखियों, असहाय एवं विधवा बहनों के लिये आर्थिक दृष्टि से सहयोग करने के लिये भी आपने संस्थाओं की स्थापना की है। यह भी आपकी सेवा-भावना का प्रतीक ही है। आपका हृदय करुणा का स्रोत है। आप किसी के दुःख को देख नहीं पाती हैं । आपके मांगलिक का प्रभाव यह है कि जो रोता हुआ प्राता है वह अापके मांगलिक वचन सुनकर हंसता हुअा जाता है। दुख और रोगों के लिए मांगलिक औषधि है. मांगलिक का माहात्म्य 0 चमनलाल कुलभूषणलाल, जम्मूतवी (काश्मीर) वर्ष वि० सं० २०१७ । यह हमारा सौभाग्य ही कहा जा सकता है कि इस वर्ष हमारे नगर जम्मू में परम विदुषी महासती श्री उमरावकुंवरजी म. सा० 'अर्चना' ठाणा चार का चातुर्मास हुा । मैं प्रतिदिन आपके दर्शन करने एवं प्रवचन सुनने के लिए जाया करता था। आपका और आपके प्रवचनों का मेरे जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा। इसी बीच एक बार मैं अचानक अस्वस्थ हो गया । उपचार कर रहे डॉक्टर ने मुझे अपने बिस्तर से भी उठने के लिए मना कर दिया । हृदयाघात होने से मुझे पूर्ण विश्राम करने के लिए कहा गया। मुझे कमजोरी इतनी अधिक हो गई थी कि मैं बोलने की स्थिति में भी नहीं था। एक दिन मैंने संकेत से एवं बहुत ही धीमे स्वर में अपनी चाची श्रीमती सरस्वतीदेवी से कहा कि मेरी भावना Jain Educatior international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy