SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 318
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साधवो दोनवत्सला / १३१ ही जाना चाहती थी किंतु घर वालों ने साथ भेजने से इंकार कर दिया। मुझे अनेक प्रकार के प्रलोभन दिये जाने लगे। धन-सम्पत्ति का लालच दिया गया। किसी लडके को गोद लेने को कहा गया और यह कहा गया कि यह सब करने की आपको अनुमति है । बस, आप संयम लेने की बात न करें । किंतु जब मन में संयम की ज्योति जाग्रत हो जाती है तो फिर किसी भी प्रकार का प्रलोभन उसे अपने पथ से विचलित नहीं कर सकता है । मेरे साथ भी यही हुआ। मैंने संयमपथ पर चलने के लिये दृढ़ संकल्प ले लिया था। मैंने इतना ही कहा-"आप यह सब कर दीजिये । किंतु इससे क्या होने वाला है। यह जो कुछ भी है वह क्षणिक सुख है। सब कुछ नश्वर है। मैं शाश्वत सुख के मार्ग पर चलने की इच्छुक हूँ।" परिवार वालों ने मेरी दृढ़ इच्छा को देखा और ब्रजमधुकर-जयंती पर मुझे ब्यावर लाये और महासतीजी के सान्निध्य में रहने की अनुमति प्रदान कर दी। कालांतर में मेरी दीक्षा भी सम्पन्न हो गई। दीक्षित होकर मैंने पूजनीया गुरुणीजी म. सा. के सानिध्य में संयम-साधना हेतु प्रवेश किया ही था कि कर्मों की विडम्बना देखिये । असातावेदनीय कर्म का उदय हुमा । संयम ग्रहण करने के दो माह पश्चात् अचानक स्वास्थ्य बिगड़ गया । बड़ी विचित्र स्थिति थी। कभी गाना, कभी रोना, कभी हंसना, कभी गुमसुम हो जाना । गरुणीजी म. सा. दिन-रात मेरे पास बैठे रहते । वैद्य बलाये डाक्टरों को भी दिखाया किंतु कोई लाभ नहीं हुआ । सारी चिकित्सा व्यर्थ गई । तंत्र-मंत्र वादियों का भी सहारा लिया गया। उन्होंने अपने ढंग से कार्य किया किंतु किसी के भी उपचार या झाड़-फूंक से मेरे स्वास्थ्य में कोई लाभ नहीं हुआ । उस समय मेरी स्वास्थ्यपृच्छा के लिये परिवार के भी सदस्य आये। वे भी मेरी स्थिति को देख कर और पूछताछ कर वापस अपनी राह पर चले जाते । उस समय केवल गुरुणीजी म. सा० ही मेरे सबसे अधिक निकट रहते। मुझे भोजन भी आप ही कराते । मधुर मधुर वचन सुनाते, छन्द सुनाते । आपके मुख से निसृत छन्दों को सुनकर कुछ समय के लिये ऐसा लगता मानो मैं एकदम स्वस्थ हैं। कुछ समय पश्चात् फिर वही अस्वस्थावस्था । मेरी ऐसी स्थिति दो वर्ष तक रही। सभी वरिष्ठ परेशान हो गये । युवाचार्य भगवन् भी पधारते । शास्त्र सुनाते, मांगलिक सुनाते । इस अवधि में थोड़ा स्वास्थ्य ठीक रहता और पुनः वही स्थिति हो जाती । __ श्री युवाचार्य भगवन् के साथ ही गुरुणीजी म. सा. का चातुर्मास नागौर में था । नागौर में गुरुणी जी म. सा० ने अट्ठाई की तपस्या की। यह तपस्या बड़ी मुश्किल से हुई। पारणे के दिन मेरा स्वास्थ्य फिर बिगड़ा । गुरुणी जी म. सा. ने एक घंटे तक मुझे अपने पास सुलाये रखा और अनवरत छन्द सुनाते रहे । आपका यह क्रम चलता रहा और इसी बीच आपने संकल्प कर लिया कि आज तो इन्हें ठीक करके ही कुछ ग्रहण करना है । आपकी साधना का चमत्कार देखिये कि काफी देर तक आप छन्द सुनाते रहे और मेरा स्वास्थ्य ठीक हो गया। मैं भी अपने आपको सहज अनुभव करने लगी। फिर कभी-कभी थोड़ी अस्वस्थता हो जाती थी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy