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आस्था के उजाले में श्रद्धासिक्त संस्मरण
[प्रांगन के गीले सीमेंट पर जैसे कोई पांव रखकर चला जाता है और फिर वे अंकित चिह्न कभी नहीं मिटते, वैसे ही सन्तों का जीवात्माओं के मन पर अमिट प्रभाव होता है । श्रमणीरत्न, अध्यात्मयोगिनी, काश्मीर-प्रचारिका, मालवज्योति श्री उमरावकुंवरजी म० सा० गत पचास वर्षों से साधनापथ की शोभा बढ़ा रही हैं। इस अन्तराल में संख्यातीत जीवात्माओं को प्रापने दिशा-बोध दिया है। प्रास्था के उजाले से उनके मन के अंधेरे को दूर किया है। उन्हें शीलाचार, आत्मनिग्रह और एकाग्र संयम का महत्त्व समझाया है । उनके जीवन को सर्वतोमुखी, उच्च, गम्भीर, सूक्ष्मतर, सुन्दरतर और समृद्धतर बनाया है । काश्मीर की बर्फीली घाटियों से लेकर मरुधरा के तपते हुए रेगिस्तान तक आपके अनेक भक्त हैं, जो आपकी कभी भी विस्मृत नहीं कर सकते, क्योंकि आपने उनकी आत्मा का शृंगार किया है, उन्हें ज्ञान, तप, संयम और योग के आभूषणों से सुसज्जित किया है। उनके लिए गुरुवर्या ऐसी हैं जैसे बर्फ से ढके किसी पहाड़ से प्रातः का सूर्य अपनी रश्मियों के रथ पर आ रहा हो । आपके दिव्य-जीवन ने अनेक व्यक्तियों को प्रभावित किया है और वह आजीवन प्रापकी छाया की सुखद अनुभूतियों को भुला नहीं पायेंगे ।
इस अध्याय में कतिपय संस्मरण प्रस्तुत हैं। पाठक इस तथ्य का ध्यान रखें कि यह संस्मरण प्रतिष्ठित साहित्यकारों के नहीं अपितु श्रद्धासिक्त भक्त श्रावकों आदि के हैं। अत: उनमें शिल्पगत प्रांजलता भले ही उच्चकोटि की न हो लेकिन अनुभूतिजन्य सच्चाई है, जिन्हें उन्होंने सरल ढंग से अभिव्यक्त करने का प्रयास किया है। -सम्पादक ]
सब भाँति सदा सुखदायक हो, दुख दुग्ण नासनहारे हो चमके सुयशचन्द्रिका
0 साध्वी सेवावन्तीजी
यह पूर्वजन्म के पुण्यों का फल है कि मैं गुरुवर्या महासती श्री उमरावकुंवरजी 'अर्चना' म० सा० के साथ साधनापथ पर चल रही हूँ। मुझे आपके साथ रहते हुए प्रतिपल अलौकिक सुख की अनुभूति होती है । आपका सम्वत् २०१६ का चातुमसि लुधियाना में था। मैंने जब म० सा० के प्रथम बार दर्शन किये तो मुझे प्रतीत
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