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योगेश्वरी महासती श्री अर्चनाजी
- आचार्य डॉ. सी. एल. शास्त्री एम. ए. (त्रय), पी-एच. डी., काव्यतीर्थ, विद्यामहोदधि
न यह कोई अतिरंजना है और न प्रशस्तिपूर्ण अलंकृति ही, महासती श्री अर्चनाजी का जीवन निःसन्देह अपने आप में अध्यात्मयोग का एक जाज्वल्यमान प्रतीक है। ध्यान उनके जीवन का अनन्य अंग है, जिसकी परिपुष्टि में उनकी साधना का शतदल उत्तरोत्तर विकसित होता गया। वह विकासक्रम आज इस स्थिति में पहुँच गया है, जिसकी स्वाध्याय, अभ्यास एवं अनुभूति प्रसूत दिव्य रश्मियाँ जन-जन में, जो उनकी सन्निधि का सौभाग्य प्राप्त करते हैं, नवजीवन का संचार करती हैं। ___महामहिम, अध्यात्मयोग के हिमाद्रि प्राचार्य हरिभद्र ने योगदृष्टि समुच्चय में जो कुलयोगियों की चर्चा की है, जिस ओर मैंने एक अन्य निबन्ध में भी संकेत किया है, महासतीजी पर पूर्णरूप से घटित होती है । उन्हें योग संस्कार से प्राप्त है । शैशव से ही ध्यान, चिन्तन, मनन की ओर उनका एक विचित्र स्थान रहा है । संयममय जीवन अंगीकार करने के पश्चात् इस दिशा में उत्तरोत्तर अधिकाधिक स्वायत्त करने की ओर उनका जो सदुद्यम रहा है, वह अध्यात्मसाधना के इतिहास का एक उज्ज्वल अध्याय है। ज्ञास्त्राध्ययन के अन्तर्गत उन्होंने योगविषयक ग्रन्थों के परिशीलन में विशेष रस लिया। महर्षि पतंजलि के योगसूत्र के साथ प्राचार्य हरिभद्र, प्राचार्य हेमचन्द्र, प्राचार्य शुभचन्द्र, उपाध्यय यशोविजय आदि के संस्कृत-प्राकृत ग्रन्थों का पारायण किया। राजस्थानी आदि लोक-भाषाओं में रचित योग सम्बन्धी कृतियों का भी अनुशीलन किया।
__अध्यात्म, साधना एवं योग-ये ऐसे विषय हैं, जो वर्गबद्धता, व्यक्तिबद्धता या संप्रदायबद्धता से सर्वथा विमुक्त हैं। संप्रदाय को आज हम संकीर्ण वर्ग या समुदाय के अर्थ में लेते हैं, जो ठीक नहीं है । “सम्प्रदायो गुरुक्रमः"-कोशकार ने उसका जो गुरु-परम्परा-मूलक अर्थ किया है, वह बड़ा सारभित है, व्यापक एवं असंकीर्ण है। गुरुक्रम के अनुसार विभिन्न परम्परा एवं परिवेश परिगत योगाभ्यास के पद्धतिक्रम कुछ भिन्न हो सकते हैं, किन्तु नैश्चयिक दृष्टि से वह भिन्नता केवल बहिर्गत होती है, अन्तर्गत नहीं। महासती श्री अर्चनाजी इस चिन्तनधारा में परम आस्थावती हैं। यही कारण है, जैन परंपरा के साधक-साधिकाओं के अतिरिक्त अन्यान्य परंपराओं के साधक-साधिकारों के साथ भी उनका घनिष्ठ आध्यात्मिक स्नेहपूर्ण सम्बन्ध रहा है, आज भी है, जो पारस्परिक आदान-प्रदानात्मक आत्मोत्कर्ष के उभयस्पर्शी उपक्रम के रूप में प्रतिफलित है।
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