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द्वितीय खण्ड / १२०
दुर्लभ गुण है। उनका हृदय आध्यात्मिक स्नेह और सौहार्द से सदा छलछलाता रहता है। जो भी उनके सम्पर्क में आता है, उनके विराट व्यक्तित्व से न केवल प्रभावित होता है, वरन् वह सहज ही धर्मोपदिष्ट भी होता है। वाक्प्रयोग के बिना भी महासतीजी म० का व्यक्तित्व अनक्षरी भाषा में कुछ ऐसा बोल जाता है, जिसकी . आने वाले व्यक्तियों के मानस पर अमिट छाप पड़ती है। पिछले अर्धशताब्द से यह महान् नारी अथक रूप में अपने ध्येय की ओर बढ़ती ही जा रही है। न इन्हें प्रतिकूल परिस्थितियाँ रोक पाती हैं और न बाधाएँ ही कोई व्यवधान पैदा कर पाती हैं । इनके साधनामय जीवन के ये ५० वर्ष अध्यात्मोत्कर्ष की वह अमर कहानी है, जिसका प्रत्येक शब्द, प्रत्येक अक्षर ज्ञान और चारित्र्य की दिव्यता से ओतप्रोत है । मानवता की उपासना में अनन्य आस्थावान् मैं मानवीय उत्कर्षों की पुण्यपुंज-स्वरूपा इन महान् नारी का इनके दीक्षा-स्वर्णजयन्ती के पावन अवसर पर हृदय से अभिनन्दन करता हूँ और यह सत्कामना करता हूँ, इनकी गौरवमयी धर्मयात्रा, जीवनयात्रा निष्कण्टक, निर्द्वन्द्व रूप से गतिशील रहे और कोटि-कोटि मानवों के लिए श्रेयस्कर, कल्याणकर सिद्ध हो । पुनः अभिनमन, अभिवंदन, अभिनन्दन ।
-संयोजक अ०भा० संत सेवक समुद्यम परिषद्
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