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________________ द्वितीय खण्ड / ८४ यह महायोगेश्वरी, साधना की दिव्य मूर्ति, गौरव-गरिमामण्डिता सन्नारी अपने अध्यात्म-अधिनायक, कुशल जीवन-शिल्पी गुरुवर्य श्री मधुकर मुनिजी महाराज की कितनी अनुग्रह-भाजन थीं, यह इसीसे प्रकट है, वे इन्हें अपनी बाई भूजा समझते थे, जिसे वे अनेक प्रसंगों पर सहर्ष व्यक्त करते थे। उन महापुरुष . का अपनी इस माहात्म्यशीला, उनकी कल्पना के अनुरूप अध्यात्म, योग, साधना, विद्या, सेवा एवं करुणा की परम दिव्य संपदा से समाप्लुता अन्तेवासिनी के प्रति असीम अनुग्रह तो था ही, बड़ा आदर भी था। वे संघ-संगठन, जन-जागरण आदि से सम्बद्ध कार्यों में महासतीजी का ससम्मान परामर्श लेते, उनके विचारों को बड़ा आदर देते, उनकी सूझबूझ की प्रशंसा करते। युवाचार्यप्रवर महासतीजी को धर्मसंघ का बड़ा संबल मानते थे । वे उन द्वारा उपहृत, उपस्कृत धर्मोपायन सादर सहर्ष स्वीकार करते। धर्मसंघ के महान अधिनेता, करुणा के सागर ऐसे महान गुरु का वियोग निश्चय ही महासतीजी के लिए एक वज्रोपम आघात है, वे मन ही मन कितनी उद्वेजित हैं, यह शब्दों का विषय नहीं है। किन्तु वे एक महान् गुरु की महान् अन्तेवासिनी हैं। अपने गुरुवर्य की गौरवमयी आध्यात्मिक विरासत आत्म-बल के सहारे सहेजती हुई विधिवैपरीत्य के हलाहल का हँसते-हँसते पान करती हुई अपने परमाराध्य गुरुवर्य के चरण-चिह्नों पर चलती हुई अपने विराट व्यक्तित्व से एक ऐसे इतिहास का सर्जन कर रही हैं, जो सदा अविस्मृत, उज्जीवित तथा अजर-अमर रहेगा। महान् साधनामयी महासती के स्वस्थ एवं शतायुर्मय जीवन की कोटि-कोटि मंगल-कामनाएँ। Jain Educatio international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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