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________________ महासती श्री "अर्चनाजी" के व्यक्तित्व-निर्माण में युवाचार्यप्रवर श्री मधुकर मनिजी म. का योगदान । आचार्य डॉ. सी. एल. शास्त्री एम. ए. (त्रय) पी-एच. डी, काव्यतीर्थ विद्यामहोदधि भारतीय साहित्य में "बहुश्रुत'' एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण शब्द है। यह समस्त पद है । बहुब्रीहि समास हैं । “बहु श्रुतं येन सः बहुश्रुतः-जिसने बहुत सुना हो, ज्ञानी जनों के मुख से तत्त्व-श्रवण करने का अनेक बार अवसर प्राप्त किया हो, वह बहुश्रुत कहा जाता है ।" यह इसका व्युत्पत्तिगम्य अर्थ है। विशिष्टज्ञान-सम्पन्न, चिन्तन-सम्पन्न व्यक्ति को बहुश्रुत ही कहा जाता है, बहुपठित या बहुअधीत नहीं । बहुपठित व बहुश्रुत में बड़ा अन्तर है । यद्यपि पठन का भी अपना महत्त्व है, किन्तु श्रवण का महत्त्व वास्तव में अनन्यसाधारण है। जिन महापुरुषों से श्रवण किया जाता है, उनके जीवन में एक तपोमय, त्यागमय, संयममय, साधनामय वैशिष्ट्य होता है। उनसे जो सुनने को मिलता है, वह अनुभव की कसौटी पर कसा हा सत्य का वह शुद्ध स्वरूप होता है, जिससे श्रोता अपने जीवन में, अपने आप में चेतनामय स्फूर्ति का अनुभव करता है। अतएव इस जगत् में जिन किन्हीं ने परम पवित्र, परमोच्च आध्यात्मिक विभूति प्राप्त की, उन्होंने केवल शास्त्राध्ययन द्वारा ही ऐसा नहीं किया, वरन् महापुरुषों के सान्निध्य, सत्संग, उद्गार-श्रवण का उन्हें विशेष अवसर प्राप्त होता रहा। महासतीजी उमरावकंवरजी म. के व्यक्तित्व-विश्लेषण के सन्दर्भ में यह एक प्रकट तथ्य है कि उन्हें ज्ञान, साधना, धर्म, सेवा आदि की दष्टि से बडे-बडे सात्त्विकचेता महापुरुषों का, महान् नारियों का मार्गदर्शन प्राप्त रहा, उस ओर महासतीजी का सहजरूप में प्रयत्न रहता रहा। महासतीजी के व्यक्तित्व-निर्माण में अपने युग के परमोबुद्धचेता मनीषी, महान् ज्ञानयोगी, बहुश्रुत साधक, पण्डितरत्न युवाचार्य श्री मधुकरमुनिजी म. का बहुत बड़ा योगदान रहा । श्री जयमलगच्छ से सम्बद्ध होने के नाते दोनों में परस्पर सहज आत्मीयता का भाव तो सदा रहा ही, युवाचार्यश्री महासतीजी के आदर्श, उत्कृष्ट व्यक्तित्व में बहुमुखी सात्त्विक, समुन्नतिप्रवण भावनाओं का दर्शन करते थे, अतः वे सदा उनके लिए एक परम पावन प्रेरणा-पंज के रूप में कार्यशील रहे । उनका यह अंकन था कि यह साधिका अध्यात्म के क्षेत्र में निःसन्देह अपनी साधना द्वारा एक कीर्तिमान स्थापित करेगी, ICA Jain Educatio international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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