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________________ महासती श्री 'अर्चना' जी की काव्य-साधना महामहोपाध्याय डॉ. हरोन्द्रभूषण जैन १. परिचय एवं वैदुष्य सतीश्रेष्ठ, परम विदुषी, उमरावकुंवरजी 'अर्चना' ने अपने प्रशस्त साध्वी-जीवन के पचास वर्ष अतिशय पवित्रता एवं गरिमा के साथ पूर्ण किए हैं। पन्द्रह वर्ष की लघुवय में भागवती-दीक्षा अंगीकार कर 'अर्चना' जी अाज जिस दृढ़ता और सफलता के साथ प्रात्मकल्याण के मार्ग पर बढ़ी-चली जा रही हैं वह अन्य आध्यात्मिक जनों के लिए आदर्श एवं स्पृहणीय है। ___ मुनि प्रवर महाराज मिश्रीमल जी 'मधुकर' ने सती-शिरोमणि 'अर्चना'जी के अभिनन्दन में जो 'गुणाष्टकम्' लिखा है उसका यह पद्य सतीजी के मधुर-व्यक्तित्व को अपनी सम्पूर्ण आभा के साथ उच्छलित करता है "या शीतांश-मुख-प्रकाश-सुभगा विद्या-विशाला प्रिया शुद्ध-श्वेत-सुवेश-दिव्य-चरितं कान्तं च यस्या वपुः। भालं भव्यतमं प्रदीप्तमतुलं मुग्धं च यस्या मनः साध्वी सा उमरावजी-वरसती जीयाज्जगत्यां सदा ॥ -(सुधामञ्जरी-पृ. १००) अर्थात् चन्द्र जैसे मुख के आभा-मण्डित प्रकाश से सुन्दर, विद्या से विशाल, सबकी प्रिय, जिनका शरीर शुद्ध, श्वेतवर्ण, सुन्दर वेश-भूषा से दिव्य प्रभावाला एवं मनोहारी प्रतीत होता है; जिनका भव्य ललाट ज्ञान की गरिमा से प्रदीप्त है, एवं जिनका मन अनुपम भोलेपन से सर्वजन-मुग्धकारी है, ऐसी सती-साध्वी उमरावकुंवरजी इस पृथ्वी पर सदैव जयवंत हों। 'अर्चना' जी ने जैनदर्शन एवं भारतीय-साहित्य तथा संस्कृति का प्रगाढ अध्ययन किया है । वे संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, गुजराती, पंजाबी, उर्दू, राजस्थानी एवं अंग्रेजी इन आठ भाषाओं की परिज्ञात्री हैं। 'अर्चना' जी का 'अर्चना' यह उपनाम अत्यन्त सार्थक प्रतीत होता है क्योंकि • उनका समग्र जीवन मोक्षमार्ग की अर्चना अर्थात् साधना के लिए समर्पित है। २. काव्य साधना ___ 'अर्चना' जी की काव्य-साधना, वस्तुतः मोक्ष-साधना का ही एक अंग है। इसीलिए उन्होंने जो कुछ भी लिखा है उसमें सर्वत्र गुरुभक्ति, गुरु-गुणगान-विलास Jain Education International For Private & Personal Use Only gandy.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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