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________________ ऐसा था बचपन / ७१ श्वासें उखड़ने लगीं। मृतक घोषित कर दिया । बारह घण्टे तक शरीर निर्जीव रहा । इस बीच एक अद्भुत घटना हुई कि आपके पिताजी जो तीन वर्ष पहले किसी अज्ञात दिशा की ओर चले गये थे अचानक घर के पिछले द्वार से आये और आपकी निर्जीव देह को उठाकर उसी रास्ते से ले गये । गाँव में उस दिन जोगियों की जमात आई हुई थी। तालाब जल से भरा हुआ था। पर जहाँ जोगियों के आसन लगे थे वहाँ एक बूंद भी जल नहीं गिरा था। पिता जी ने योगिराज के सम्मुख आपकी देह रख दी। योगिराज ने कहा 'तु कोई लाश लाया हैं।' पिता जी ने कहा-'नहीं, ऐसा नहीं हो सकता, इसे तो दीर्घजीवन जीना है, आपकी कृपा हो तो यह जीवित हो जायेगी।' योगिराज ने राख की चिंउटी भरकर पुडिया में बन्दकर ताबीज की तरह गले में बांध दी। योगी की कृपा से चमत्कार हुना। चेतना लौट आयी। पिताजी उसी द्वार से घर में आये और आपको छोड़कर वापस चले गये। इस अद्भुत घटना से दादिया निवासी हैरान थे । ग्रामवासियों ने पिताश्री मांगीलाल जी का पीछा किया लेकिन उनका कुछ भी पता न लगा । वस्तुतः पिताजी कैसे पाये ? योगिराज की दी हुई राख से आप कैसे पुनः जीवित हो गईं ? यह आज भी रहस्य बना हुआ है। आपका छः वर्ष तक का जीवन दादिया में ही व्यतीत हुआ। एक दिन आप घर के पिछवाड़े बच्चों के साथ खेल रही थीं। पिताजी आये और आपको उठाकर केब्बाण्या गांव ले गये । जाते हुए बच्चों से कह दिया कि घर पर सूचित कर दें। तब आपका नाम अलोलकंवर रखा गया था। केब्बाण्यां गांव अजमेर जिले में नसीराबाद के पास है। वहीं आपकी बड़ी बहन सौभाग्यकुंवर की शादी निश्चित की गई थी । केव्बाण्यां आपका ननिहाल भी था। अाप बाल्यावस्था से ही करुणामयी थीं। जब भी किसी गरीब भूखे या बेहाल को देखतीं तो आंखों में आंसू आ जाते और नन्हीं अलोलकंवर घण्टों बैठे सोचा करती यह भूखा क्यों है, इसके कपड़े फटे क्यों हैं, इस बीमार व असहाय से चला क्यों नहीं जाता ?......"और वह अपनी क्षमता और सूझ-बूझ के अनुसार सहायता करने के लिए तत्पर हो जाती। किसी गरीब को देखकर कहती 'जरा रुकना भैया' और घर से लाकर किसी को घी, गेहूँ तो किसी को कपास लाकर दे देती । पाँच वर्ष की आयु में किसी भिखारी को लड्डू देते समय जब आपको डांट दिया गया तो आपका मन पाहत हो गया, वह भिखारी चुपचाप लड्ड रख कर चला गया। आपने उसे जब जाते हए देखा तो मन रो उठा । आपने उसी दिन संकल्प कर लिया कि कभी लड्डू नहीं खाऊँगी। तब से आज तक आपने कभी लड्डू को हाथ तक नहीं लगाया । ___ बचपन में एक ऐसी घटना घटित हो गई कि आपने कभी नारियल की गिरी भी न खाई । आपके घर पर एक नाइन पाती थी जो आठ नौ वर्ष की आयु में विधवा हो गई थी, उसने बड़ी सात्विकता से अपना वैधव्य गुजारा । लेकिन एक दिन एक युवक ने नारियल की गिरी खिला दी और वह उसके साथ चल दी। VASNA Jain Education International For Private & Personal Use Only VIWw.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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