________________
Jain Educ International
द्वितीय खण्ड / ४० कह लेते हैं । आपके जीवन में कोई दिखावा नही, अपितु प्रापके हर शब्दों में हृदय के तारों को झकझोर देने की शक्ति है । आपका कहना है -
जियो तो ऐसे जियो जैसे सब तुम्हारा है, मरो तो ऐसे मरो
जैसे तुम्हारा कुछ भी नहीं ॥
आपकी जीवनयात्रा में दु:ख, प्रभाव, कष्ट, संकट, घुटन सदा साये की तरह साथ रहे। फिर भी आपका पैगाम है
चाहे कोई खुश हो, चाहे गालियाँ हजार दे । मस्तराम बनके जिन्दगी के दिन गुजार दे ॥
आपमें जिन्दगी के हर पक्ष की अनुभूतियों को गीतों के माध्यम से व्यक्त करने की अद्भुत सामर्थ्य है ।
वह सुबह कभी तो आयेगी
इन काली सदियों के सिर से जब रात का आँचल ढलकेगा, जब दुःख के बादल पिघलेंगे,
जब सुख का सागर छलकेगा ॥
आप शान्तिप्रिय स्वभाव के हैं । "जीयो और जीने दो" के सिद्धांत को मानते हैं। लोग कहते ही हैं किन्तु आप उसे व्यवहार में भी लाते हैं। संसार में प्राय: प्रत्येक को किसी न किसी से, कोई न कोई शिकायत रहती है किन्तु ग्राप शिकायत न करके सब्र कर लेने में विश्वास रखते हैं । जो जीवन में जितना कर दे, उसे एहसान मानते हैं।
युग-दर्शन के नये स्रोत, पूज्य गुरुवर्या हमारी सनातन संत परम्परा की तप:प्राण कड़ी हैं । आपकी तपस्या ने हमारी आस्था के प्रायामों को नया आयुर्बल दिया है और हमारी चेतना को वास्तविक संजीवनी ।
अन्त में मैं यही कहूँगी कि अध्यात्मजगत् की परमसाधिका पूज्य गुरुवर्या श्रमण संघ के लिए गौरव एवं प्रेरणा के प्रतीक हैं ।
आपकी दीक्षा - स्वर्णजयन्ती पर मैं प्रभु महावीर से प्रार्थना करती हूँ कि हमें आपका मार्गदर्शन युग-युग पर्यन्त मिलता रहे । आपकी छाया में साधनापथ की बाधाओं पर मैं सहज ही विजय पा सकू एवं आपके श्री चरणों पर मैं सदैव विनत रहूँ ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org