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________________ जयं परम्परा के पांच पुष्प / १७ (५) महासती श्री गवराजी का संघाड़ा (६) महासती श्री सोहन कुंवरजी का संघाड़ा तपस्वी मुनि श्री मांगीलालजी म. सा. जन्म एवं माता पिता तपस्वी मुनि श्री मांगीलालजी म. सा. का जन्म वि. सं. १९४० भाद्रपद दशमी को राजस्थान की किशनगढ़ स्टेट के ग्राम दादिया निवासी श्रीमान् हजारीमलजी तातेड़ की धर्मपत्नी श्रीमती पुष्पादेवी के उदर से हुआ । आप तीन भाई थे - (१) श्री जवाहिरसिंहजी (२) श्री मोतीलालजी और ( ३ ) श्री रघुनाथसिंहजी । श्राप सबसे छोटे थे । जन्म से कुछ दिन बाद आपको मांगीलाल के नाम से पुकारा जाने लगा और अन्त तक आप इसी नाम से प्रसिद्ध रहे । संयम स्वीकार करने के बाद भी आपका नाम मुनि श्री मांगीलालजी महाराज ही रहा । बाल्यकाल बाल्यकाल जीवन का सुखद एवं सुहावना समय होता है । यह जीवन का स्वर्णिम काल होता है । इस समय मनुष्य दुनिया की समस्त चिन्ताओं एवं परेशानियों से मुक्त होता है, और विषय विकारों से भी कोसों दूर होता है । परन्तु इस सुहावने समय में आपको अपने पूज्य पिताश्री का बियोग सहना पड़ा । यह सौभाग्य की बात है कि माता के प्रगाध स्नेह एवं दुलार में आपका जीवन विकसित होता रहा । ३४ वर्ष की अवस्था तक आपको माताश्री का सान्निध्य बना रहा । प्यार दुलार मिलता रहा । आपका ननिहाल नसीराबाद छावनी के निकट केबाण्या गांव में था । वहीं के प्रसिद्ध व्यापारी श्री हजारीमलजी की पुत्री अनुपम कुमारी के साथ आपका विवाह सम्पन्न हुआ और जीवन का नया अध्याय शुरू हुआ । आपका जीवन प्रारम्भ से ही सुसंस्कारित था । आप प्रायः साधु-संन्यासियों के सम्पर्क में आते रहते थे । इसका ही यह मधुर परिणाम था कि आगे चलकर आप एक महान् साधक बने और आपने अपने जीवन को सही दिशा की ओर अग्रसर किया । आपके जीवन में अनेकानेक सद्गुण विद्यमान थे । सरलता, स्नेहशीलता, उदारता, दयालुता एवं न्यायप्रियता आपके जीवन के कण-कण में समाहित थी । आपके जीवन की यह विशेषता थी कि आप कभी किसी का दुःख देख नहीं सकते थे । सदा-सर्वदा दूसरे के दुःख को दूर करने के लिये प्रयत्नशील रहते थे । सेवानिष्ठ जीवन विक्रम सम्वत्, १९७४ में प्लेग की भयंकर बीमारी फैल गयी । जन-मानस आतंक की उत्ताल तरंगों से आन्दोलित एवं विचलित हो उठा। देखते ही देखते सब के स्वजन - परिजन काल के गाल में समाने लगे और बचे हुए लोग अपने प्राण बचाने का प्रयत्न करने लगे । गाँव खाली होने लगा और घरों में लाशों के ढेर Jain Education International For Private & Personal Use Only jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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