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________________ ज्योतिर्धर आचार्य : संक्षिप्त जीवन-रेखा / ७ वर्ष पश्चात् वि. सं. १९८९ पाली में छह सम्प्रदायों का एक मुनि- सम्मेलन आयोजित हुआ । उसमें सम्प्रदाय की सुव्यवस्था के लिए मुनिश्री हजारीमलजी म. सा. को प्रवर्तक एवं मुनि श्री चौथमलजी म. को मन्त्री पद पर नियुक्त किया गया । इस व्यवस्था के मध्य कुछ विचारशील सज्जनों ने यह विचार किया कि जब सम्प्रदाय में विद्वान् एवं योग्य मुनिराज विद्यमान हैं, तो फिर आचार्य पद रिक्त क्यों रखा जाय ? सबकी दृष्टि मुनि श्री मिश्रीमलजी म. सा. 'मधुकर' की प्रोर गई और उनसे प्राचार्य पद सुशोभित करने के लिये आग्रह किया जाने लगा । आपकी ज्ञानगरिमा को ध्यान में रखकर नागौर में वि.सं. २००४ के शुभ दिन समारोह पूर्वक आपको प्राचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया गया और श्रापको प्राचार्य जसवन्तमलजी म. सा. के नाम से अभिहित किया गया । आपने आचार्यपद ग्रहण अवश्य किया किन्तु आपका अन्तःकरण फिर भी एकान्त साधना एवं शान्ति के लिए लालायित बना रहा । कुछ समय पश्चात् ही अपने अपनी शान्तिप्रिय साधनाशील प्रकृति के कारण प्राचार्यपद पर नहीं रहने का निर्णय कर लिया । मुनिराजों एवं श्रावकों की आग्रह भरी विनतियाँ आपकी आत्मा की आवाज को दबा नहीं सकीं। वि. सं. २००९ में सादड़ी के अखिल भारतीय स्थानकवासी मुनियों के बृहद् साधुसम्मेलन में जब अखिल भारतीय संगठन के लिए आह्वान हुआ तो इस सम्प्रदाय ने श्रमण-संघ में अपना विलय करके एकता के लिए महान् त्याग का प्रदर्श प्रस्तुत किया । इस प्रकार आपने आचार्यपद का त्याग कर दिया और पुनः मुनि श्री मिश्रीमलजी म. सा. 'मधुकर' बन गए। यह त्याग का अद्भुत उदाहरण है । ऐसे उदाहरण बहुत कम मिलते हैं । आपका विस्तृत परिचय आगे दिया जा रहा है । यहाँ पर उल्लेख करना प्रासंगिक ही होगा कि आचार्य श्री जयमल्लजी म. सा. के पश्चात् जितने भी आचार्य हुए, वे सभी अविवाहित थे । Jain Education International For Private & Personal Use Only (संकलित ) 00 www ainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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