SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अर्चना-अर्चन - खुर्शीद 'अजय' सत्य-अहिंसा, तपस-त्याग से जीवन बना तुम्हारा ! शत-शत अर्चना करता हूं मैं हे अर्चना तुम्हारा !! मेरा तो संसार तुम्ही हो, महायोगिनी, महामनीषी तुम ही मेरी माता श्वेताम्बरी की जय हो सदा तुम्हारे सुमिरण से और तुम्हारे तपश्चरण से मैं जीवन सुखी बनाता, ज्ञान का सूर्योदय हो तनुज धरम का हंसते-हंसते बस ऐसे ही मने जनमदिन जब से बना तुम्हारा ! जैसा मना तुम्हारा ! शत शत अर्चना करता हूं मैं, शत शत अर्चन करता हूं मैं. हे अर्चना तुम्हारा हे अर्चना तुम्हारा वीणावादिनी, हंसवाहिनी मुसकानों से तुम अंगना की हो तुम अवतारी में फूल खिलाने वाली शांति मार्ग की अग्रगामिनी धर्म से उन्मुख पथभ्रष्टों मोहक छवि तुम्हारी को पथ दर्शाने वाली मेरे मस्तक आशीषों का मोहक है मीठी भाषा में अांचल धना तुम्हारा ! ललकारना तुम्हारा ! शत शत अर्चन करता हूं मैं, शत शत अर्चन करता हूं मैं, हे अर्चना तुम्हारा हे अर्चना तुम्हारा मात ! तुम्हारे पद-पंकज में स्वर्ग छुपा है मेरा मैं खुर्शीद अजेय हूं मुझको तुमने दिया उजेरा या लगता है-जनम जनम से सेवक बना तुम्हारा ! शत शत अर्चन करता हूं मैं, हे अर्चना तुम्हारा ! आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की अर्चनार्चन | ६० Jan Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy