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शत-शत वंदन 1 आर्या प्रतिभाकुमारी म. सा.
आपकी छाया में दीक्षित हो लगा, जैसे दूर से थके हारे आये प्राणी को, मिली हो घने वट वृक्ष की छाया । आपके ज्ञान-लोक में आ ऐसा लगा, जैसे दूर से उड़कर आये प्यासे पंछी को, मिल जाये शीतल जल का झरना । आपके पदचिह्नों पर चलकर ऐसा लगा, जैसे अनावृष्टि से सूखी सरिता को, मिल गया हो सागर का किनारा । बस एक हो कामना है, जपती रहूं आठों याम अपनी श्रद्धया गुरुणीजी म.सा. का नाम, जिनका मुझ निरावलम्ब को मिल गया सहारा ।। दीक्षा-स्वर्णजयंती का पावन दिवस आया । मन हरषाया, मंगल गीत गाया ।। इस शुभ अवसर पर, हे जैनजगत की श्रमणीरत्न ! चरणों में करती अर्पित श्रद्धासुमन । हे ध्यानयोग की परम साधिका ! प्रतिभा करती वंदन शत-शत वंदन/अभिनंदन !
आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की
प्रथम खण्ड / २७
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