SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -- साहित्य-काव्यनी, रचना करतां, उपदेश अनेरो देता गुरुदेवनां, अधूरा कार्या ने, पूर्ण हर्षे करतां भाइयो रे.... देश-विदेशे लाभ प्रापे छे अपार धन्य राजस्थान........ युग-युग जीवो, गुरुणी मारा, साधना सिद्ध करतां कल्याणकारी, मार्ग दीपावी, शासक रोशन करतां, बहेनो रे.... सती वनिता मांगे, आशिष अपार धन्य राजस्थान........ । भाइयो रे.... सुवर्ण जयंति प्राजे रे उजवाय, ___ धन्य राजस्थान, धन्य कहेवाय । 00 मैं गुरूवर्या की परछाई 1 जनसाध्वी सुशीला 'शशि' साहित्यरत्न प्रतीत होता थाजीवन-स्नायुओं में जंग लग गया है, प्रवाहित होती प्राणवायु, कितनी दूषित हो गई है, का दर मोड दिग्भ्रांत करता था। आधे पाँव गर्त में धंसकर बार बार एक ही बिन्दु पर लौट आते थे । हर संबल बासी लगता था। अबलगता है, एक उजाला चारों ओर से मेरे समीप पा रहा है, ज्ञान-कुसुम हर सुबह अपनी पंखुरियाँ फैला मुझ से बातें करते हैं । श्रद्धा की पुरवाई मुझे कोई अांचलिक गीत सुना जाती है । तपोमयो शशि-ज्योत्स्ना मुझ से अाँखमिचौनी खेलती है। अब मैं"मैं" नहीं, परमोपास्या, परमज्योतिर्मयी गुरुवर्या की मात्र परछाई हूँ। आई घडी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की प्रथम खण्ड / २५ 00 Jain Education International For Private & Personal Use Only ..www.jainelibrarvard
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy