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________________ १४ वर्ष की आयु में मेट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण कर आपने देहली व ब्यावर का कार्य सुचारु रूप से सम्भाल लिया। १५ वर्ष की आयु में आपका पाणिग्रहण ब्यावर निवासी श्रीमान् मिश्रीमलजी सा. मुणोत एवं श्रीमती मिश्रीबाई की सुपुत्री सुरमाबाई के साथ सम्पन्न हुआ। विवाह के एक वर्ष पश्चात् ही मात्र तीन दिन के ज्वर से आपका अकस्मात् देहावसान हो गया, जिसका परिवार-जनों को गहरा आघात पहुँचा। श्रीमान् केसरीमल सा. अपने पुत्र की अनहोनी घटना को सहन नहीं कर पा रहे थे। यह घटना ऐसी घटना थी जो कभी भलायी नहीं जा सकती, लेकिन उस घटना को विस्मृत करने हेतु १९९३ वि. में प्रान्तमन्त्री, स्वामीजी पूज्य गुरुदेव श्री हजारीमलजी म. सा., स्वामीजी उ. प्र. शासनसेवी श्री व्रजलालजी म. सा., श्रमणसंघीय युवाचार्य पं. रत्न श्री मिश्रीमलजी म. सा. 'मधुकर' आदि का अपने घर से चातुर्मास करवाया। इसी के साथ श्रीमान् कुन्दनमलजी सा. व सुरमाबाई के नाम से सेठ सा. ने एक बड़ी धर्मशाला बनवाई जो अभी पाली दादावाडी के समीप स्थित है। श्रीमान् मिश्रीमल सा. ने भी दादावाडी में इनके नाम से 'सामायिक-भवन' बनवाया। कुन्दनविलास, जीवनसुधार को कुञ्जी, नित्यस्मरण आदि पुस्तकें छपवाई गईं। श्रीमान् कुन्दनमल सा. की धर्मपत्नी श्रीमती सुरमाबाई वर्तमान में काश्मीरप्रचारिका, अध्यात्मयोगिनी, प्रवचनशिरोमणि श्रमणीरत्न श्री उमरावकुंवरजी म. सा. 'अर्चना' की पाटवी शिष्या घोर तपस्विनी श्री उम्मेदकुंवरजी म. सा. के नाम से प्रसिद्ध हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रकाशन में श्रीमान् स्व. कुन्दनमलजी सा. की स्मृति में उनके परिवार की ओर से उदार सहयोग प्राप्त हुआ है, एतदर्थ हार्दिक धन्यवाद । 10 (स्व.) श्रीमान् गुमानमलजी सा. चोरडिया, मद्रास श्रीमान गुमानमलजी सा. चोरडिया स्थानकवासी जैनसमाज में एक आदर्श सदगृहस्थ के प्रतीक रूप हैं। प्रकृति से अतिभद्र, सरल, छोटे-बड़े सभी के समक्ष विनम्र किन्तु स्पष्ट और सत्यवक्ता, अपने नियम व मर्यादाओं के प्रति दृढ़ निष्ठासम्पन्न, गुरुजनों के प्रति विवेकवती आस्था से युक्त, सेवा कार्यों में स्वयं अग्रणी तथा प्रेरणा के दूत रूप में सर्वत्र विश्रुत । आपने बहुत वर्षों पूर्व श्रावकव्रत धारण किये थे । अन्य अनेक प्रकार की मर्यादाएँ भी की थीं, इच्छापरिमाणवत तो आपकी दृढ़ता तथा कार्यविधि सबके लिये ही प्रेरणास्पद है। अपनी की हुई मर्यादा से अधिक जो भी वार्षिक आमदनी होती है वह सब तुरन्त ही शुभ कार्यों में जैसे जीवदया, असहाय-सहायता, बुक-बैंक, गरीब व रुग्णजन-सेवा तथा साहित्य-प्रसार में वितरित कर देते थे। राजस्थान तथा मद्रास में आपकी दानशीलता से अनेक संस्थाएँ लाभान्वित हो रही हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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