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________________ योग और संधिपीड़ा डॉ. रतनचन्द्र वर्मा एम. बी. बी. एस., एफ. आर. सी. एस. संधियाँ मनुष्य शरीर का प्रावश्यक अंग हैं, जिससे वह चलायमान, क्रियाशील व लचीले शरीर का मालिक होता है। बचपन व युवावस्था में वे स्वाभाविक रूप से, पूर्णरूप से घमावदार अपनी-अपनी बनावट के अनुसार होते हैं, परन्तु जैसे-जैसे प्राय ढलती जाती है, संधियों की स्वाभाविक चिकनाहट कम होती जाती है, मांसपेशियां व तंतुएँ कड़क होती जाती हैं, जिससे कि संधियों का घुमाव कम होता जाता है और पीड़ा भी उत्पन्न होने लगती है। यह उमर का तकाजा है। हर मनुष्य को कम ज्यादा इस स्थिति का सामना करना पड़ता है। यह भी सत्य है कि योग के अभ्यास से यह स्थिति काफी अर्से तक टाली जा सकती है। योग हमें शारीरिक, मानसिक, सामाजिक व आध्यात्मिक स्वास्थ्य प्रदान करता है, जिससे कि हम सम्पूर्ण रूप से स्वस्थ रह सकते हैं । संधियों को चलायमान रखने के लिए निम्न शरीर के अंशों की प्रावश्यकता होती है १. मजबूत हड्डियां व उनके चिकने सिरे-संतुलित आहार, त्वरित पाचनक्रिया, उपयुक्त रक्तसंचार द्वारा हड्डियों को पौष्टिक पदार्थ व शुद्ध वायु पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होती है। विकारयुक्त रस का निष्कासन सुचारु रूप से सम्पन्न होता है। इस प्रकार हड्डियाँ मजबूत रहती हैं और उनके सिरे चिकने बने रहते हैं। २. लचीलापन, मांसपेशियों की ताकत व उनकी कसावट बरकरार बनी रहती है। ढलती उमर पर भी प्रासन, प्राणायाम द्वारा लचीलापन व संधियों का पूर्ण घुमाव कायम रहता है। ३. संधियों का नियंत्रण दिमाग व नलिकाविहीन ग्रंथियों के स्राव से होता है । योग के अभ्यास से हमारा दिमाग क्रियाशील व चुस्त रहता है। हमारी पंचज्ञानेन्द्रियाँ व पंचकर्मेन्द्रियां भी सुचारु रूप से कार्य करती रहती हैं। हमारे पिट्यूटरी, थायराईड, पैरा थाईराईड व एड्रीनल ग्रंथियां भी योग से प्रभावित होती हैं व संधियों को चलायमान रखने में सहायक होती हैं। ४. संधियों को चलायमान रखने के लिए शक्ति का भरपूर आयाम अति पावश्यक है। प्राणायाम हमें शक्ति प्रदान करता है, जिसका उपयोग है-संधियों शरीर को क्रियाशील करने में प्रत्यन्त सहायक होती हैं । ५. शरीर का भरपूर उपयोग करने पर उसे विश्राम की भी आवश्यकता होती है । बिना विश्राम के कोई भी मशीन जल्दी टूट जाती है। इसलिए शरीर को क्रम से तनाव व विश्राम मिलना आवश्यक है। योग द्वारा हम शरीर को इच्छापूर्वक तनावरहित कर सकते हैं। इसे वासनस्थ तम आत्मस्थ मम तब हो सके आश्वस्त जम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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